इंदौर के बाद जबलपुर में दिखा अमानवीय चेहरा, बेसहारा बुजुर्गों को बीच सडक़ छोड़ दिया ठिठुरने

जबलपुर। ओस से बचने छांव न ठंड से बचाव के लिए बिछौना, अलाव के लिए लकड़ी भी नहीं है। ठिठुरा देने वाली ठंड में असहाय, मजबूर लोग नर्मदा तट ग्वारीघाट, तहसीली चौक के सामने, रेलवे स्टेशन, फु टपाथ में खुले आसमान तले सर्द रात बिताने मजबूर हैं। जबकि, शहर स्थित आश्रय स्थल खाली पड़े हैं। ‘पत्रिका’ रिपोर्टर ने ग्वारीघाट स्थित आश्रय स्थल की पड़ताल की तो दीवार काली नजर आईं, जिनकी पुताई वर्षों से नहीं हुई। अलाव की भारी भरकम लकड़ी अंदर पलंग के पास रख दी गई है। शौचालय की ठीक ढंग से सफाई नहीं हो रही है। तीस में से आधे बिस्तर ही भरे हैं। ये ही हाल अन्य आश्रय स्थलों का भी है। नगर निगम इन रैन बसेरों के बेहतर रखरखाव और मौसम के अनुकूल व्यवस्थाओं के बड़े दावे तो करता है, परंतु मौके की तस्वीर हकीकत बयां कर रही है।

ठंड से बचाने के नहीं हो रहे प्रयास, बच्चों से लेकर बुजुर्ग भी शामिल
खुले आसमान तले ठिठुरने को मजबूर हैं बेसहारा-मजबूर लोग, बदहाल रैनबसेरे

 

फैक्ट फाइल
6 रैन बसेरा संचालित
2 में अन्य गतिविधि संचालित
1 रैनबसेरा भवन नहीं किया जा रहा है हैंडओवर
200 से ज्यादा बिस्तर क्षमता

इन स्थानों पर संचालित हैं रैनबसेरा
ग्वारीघाट, तिलवाराघाट
पिसनहारी मढिय़ा के समीप
मेडिकल अस्पताल परिसर
आईएसबीटी
दमोहनाका

 

खाली हैं आश्रय स्थल
निगम के नौ आश्रय स्थल हैं। इनमें से छह रैन बसेरा संचालित हैं। ज्यादातर के बिस्तर खाली हैं। जबकि, तीन रैन बसेरा में से गोकुलदास धर्मशाला स्थित रैन बसेरा में एक साल पहले जिला प्रशासन ने सजायाफ्ता कैदियों को ठहरा दिया। इसके कारण सात बिस्तर भरे हैं। बाकी बिस्तरों पर कोई भी जरूरतमंद आने तैयार नहीं है। इसी तरह से अधारताल स्थित आश्रय स्थल में दो साल पहले विस्थापितों को ठहरा दिया गया। पंद्रह परिवार यहां रह रहे हैं। वे रैन बसेरा खाली करने तैयार नहीं हैं। इसी तरह से एल्गिन अस्पताल परिसर में निगम ने रैन बसेरा बनवाया, लेकिन अस्पताल प्रशासन अब ये भवन हैंडओवर नहीं कर रहा है।

भोजन का संकट वापस लौट जाते हैं
निगम के रैन बसेरों में रहने वाले राम, कोदूनाथ, विसंभर ने बताया कि ज्यादातर लोग आश्रय स्थलों से वापस फु टपाथ पर लौट जाते हैं। इसका बड़ा कारण उन्होंने भोजन का संकट बताया। वे नर्मदा तट, मंदिरों के पास रहते हैं तो उनके भोजन का इंतजाम हो जाता है। जानकारों का मानना है कि निगम को अपनी रसोई इन आश्रय स्थलों के आसपास संचालित करना चाहिए।

सभी संचालित रैन बसेरा में मौसम के अनुसार अलाव, कम्बल, बारिश के मौसम में टॉवल, गर्मी के दिनों में पंखा की व्यवस्था की जाती है। फिलहाल 6 रैन बसेरा संचालित हैं। उनमें गर्म कपड़ों की व्यवस्था की गई है। ज्वाला संस्था के माध्यम से आश्रय स्थलों का संचालन किया जा रहा है। खुले में रहने वाले निराश्रितों को रात के दौरान आश्रय स्थल लाया जा रहा है, लेकिन वे वापस लौट जाते हैं।
- अंजू सिंह उपायुक्त, नगर निगम, आश्रय स्थल प्रभारी



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