लाभ का धंधा: इस नदी किनारे की ली नारियल की खेती, 1 करोड़ के सालाना टर्नओवर का लक्ष्य

जबलपुर। नर्मदा तट लम्हेटाघाट की उर्वरा धरा पर लगाए गए बागान में अब नारियल फलने लगा है। आमतौर पर नारियल को दक्षिण भारत की फसल माना जाता है। उन्नत किसान अनिल पचौरी ने हैदराबाद और केरल में कई महीने तक रहकर नारियल खेती करने का तरीका सीखा। फिर वैज्ञानिकों से सलाह ली। नारियल के किसानों को नर्मदा किनारे की मिट्टी दिखाने लाए। उनके मार्गदर्शन में तीन साल पहले नारियल के पौधे लगाए। अब इनमें फल लगने लगे हैं।

जीवनदायिनी के ग्रीन बेल्ट को बचाना और खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने का लक्ष्य

ग्रीन बेल्ट को बचाना लक्ष्य
किसान अनिल का कहना है कि उनका लक्ष्य खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने के साथ ही जीवनदायिनी नर्मदा के ग्रीन बेल्ट को सुरक्षित बचाना है। नर्मदा तटों के आसपास जिन गरीब किसानों की जमीन है उसे आर्थिक रूप से समृद्ध लोग खरीदते जा रहे हैं। बाद में उन जमीनों पर फार्म हाउस, रिसोर्ट बना दिए जाते हैं। इतना ही नहीं टाउनशिप विकसित कर दी जाती हैं। जिनका गंदा पानी नदी में मिलता है। नर्मदा तट पर आद्र्रता ज्यादा होती है ऐसे में अगर नारियल की खेती की जाए तो किसान को ज्यादा लाभ होगा और वह कभी अपनी जमीन नहीं बेचेगा।

 

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एक करोड़ के टर्नओवर का अनुमान
पचौरी बताते हैं कि नारियल 12 महीने फलने वाला फल है। पानी वाला कच्चा नारियल बाजार में थोक में 15 से 20 रुपए का एक बिकता है। सभी दो हजार पौधे सालभर फलेंगे तो उन्हें बड़ी आय होगी। इसके अलावा नारियल के पेड़ 15-15 फीट के अंतर पर होने के कारण वे फिलहाल इन पौधों के बीच सब्जी से लेकर दलहन की खेती कर रहे हैं। भविष्य में नारियल के पेड़ों के बीच आम के पौधे भी लगाने की योजना है। जिससे एक ही खेत में चार प्रकार की फसल ले सकें। इतना ही नहीं नारियल के पेड़ के सह उत्पाद के रूप में पत्तों से झाड़ू भी तैयार कराएंगे।

यह है स्थिति
10 एकड़ में खेती
2 हजार पौधे लगाए थे तीन साल पहले
1 करोड़ के लगभग सालाना टर्नओवर का लक्ष्य

नारियल की फसल को लेकर लम्बा अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों और विशेषज्ञ किसानों के मार्गदर्शन में तीन साल पहले लम्हेटाघाट में नर्मदा तट के समीप पौधे लगाए थे। अब नारियल फलने लगा है। मेरा उद्देश्य खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने के साथ ही किसानों को प्रेरित करना है कि वे ग्रीन बेल्ट की जमीन न बेचें। ऐसी खेती करें जिससे जीवनदायिनी नदी को लाभ हो और स्वयं की आर्थिक स्थिति भी सुधरे।
- अनिल कुमार पचौरी, किसान, लम्हेटाघाट



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