
जबलपुर। शहर का ऑक्सीजोन सिमटता जा रहा है। शहर में बीते पांच साल के दौरान हजारों की संख्या में पौधे काटे गए, लेकिन इनके स्थान पर दूसरे पौधे नहीं लगाए गए। मदन महल से अधारताल के बीच पहले फोर लेन सडक़ निर्माण के नाम पर पौधे काटे गए। सडक़ निर्माण में भी पौधे लगाने की जगह नहीं छोड़ी गई। अब फ्लाई ओवर के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं, लेकिन इनके स्थान पर पौधे कहां लगाए जाएंगे, यह तय नहीं हो रहा है। हजारों की संख्या में काटे गए पेड़ों की लकडिय़ां कहां हैं, इसका भी हिसाब नहीं है।
कॉन्क्रीट के जंगल में तब्दील सडक़ें
शहर की सडक़ किनारे लगे पेड़ों को कभी सडक़ बनाने तो कभी मेंटेंनेस कारणों के चलते काट दिया जाता है। एक बार फिर अब पेड़ों पर फ्लाईओवर बनाने के नाम पर पेडो पर आरी चलाई जा रही है, लेकिन पेड़ लगाने की दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके चलते हरीभरी सडक़ अब कॉन्क्रीट के जंगल में तब्दील हो रही है। कुछ ऐसे ही स्थिति शहर के रानीताल दमोह नाका मार्ग में बनी है। यहां सडक़ चौड़ीकरण के बाद भी पौधों के लिए जगह नहीं छोड़ी। शहर की कई सडक़ें ऐसी हो गई हैं जहां दोनों छोर पर एक भी पौधे नहीं है।

करीब 100 से अधिक पेड़ कटे
जानकारों के अनुसार पिछले एक दशक के दौरान करीब 100 से अधिक पेड़ इस मार्ग पर काट दिए गए। सडक़ की सुंदरता गायब हो गई है। इस मार्ग पर पेड़ों के ठूंठ ही दिखाई दे रहे हैं। जबकि इन पेडों के एवज में नए पेड़ लगाने के लिए जिम्मेदारों ने सुध नहीं ली। इस मार्ग पर काटे गए पेड़ों के चलते हरियाली एक तरह से गायब हो गई है, जिससे राहगीरों को भी छांव नसीब नहीं हो पा रही है।
पेड़ों को काटने के दौरान बड़ी तादाद में लकडियां भी निकलीं, लेकिन ये कहां चली गईं, इसे लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। स्थानीय निवासी रामदीन गुप्ता, शुभम गजभिए ने कहा कि निर्माण कार्य के दौरान पेड़ों की लकडिय़ों को लादकर ले जाया गया। लोगों ने आरोप लगाया कि सम्बंधित विभागों ने पेड़ों की लकडिय़ों को गुपचुप गायब कर दिया गया है। इस सम्बन्ध में पूर्व में भी आरोप लग चुके है।
निगम में हुई धांधली की जांच हो
इस सम्बंध में नगर निगम के पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेश सोनकर का कहना है कि नगर निगम द्वारा हजारों की संख्या में शहर से पेड़ काट दिए गए। इनके स्थान पर एक भी पेड़ नहीं लगाए। उन्होंने आरोप लगाए कि पेड़ा काटने के बाद नए पेड़ लगाने के नाम पर भी हेराफेरी की जा रही है। सडक़ किनारे पेड़ लगाने जगह नहीं छोड़ी जा रही। उनका आरोप है कि विशालकाय पेड़ जो काटे जा रहे है। सांठगांठ से उसकी लकड़ी भी बेची जा रही है। पेड़ कटने के बाद लकड़ी सीधे टाल पर जा रही है। इसकी जांच की जाए, तो बड़ा घोटाला सामने आएगा।
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