
जबलपुर। सुरक्षाबलों के लिए नक्सली और आतंकवाद प्रभावित इलाकों में कारगर माइन प्रोटेक्टिड वीकल (एमपीवी) का नियमित उत्पादन अभी जबलपुर स्थित वीकल फैक्ट्री में नहीं हो पा रहा है। इसमें सबसे बड़ी बाधा विशेष प्रकार की आर्मर्ड शीट है। वाहन के 200 से अधिक ढांचे (हल) तैयार किए जा चुके हैं, लेकिन इसके कवच का काम आर्मर्ड शीट करती है, जिसकी कमी लगातार बनी है। प्रबंधन इसे जुटाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली। आयुध निर्माणियों में एमपीवी के मामले में वीकल फैक्ट्री जबलपुर (वीएफजे) नोडल सेंटर है। पूर्व में आयुध निर्माणी अवाड़ी से यह प्रोजेक्ट शिफ्ट हो गया था। तब से सेना और अद्र्धसैनिक बलों के अलावा राज्यों की पुलिस के लिए यहीं पर एमपीवी का उत्पादन होता है। इस वाहन की विशेषता यह है कि इसके नीचे 10 से 14 किलो टीएनटी भी आ जाए, तो इसमें बैठे सुरक्षाबल विस्फोट के बाद भी सुरक्षित रहते हैं या उन्हें मामूली नुकसान होता है।
सुरक्षाबलों के कवच के रूप में विख्यात इस वाहन में अलग-अलग मोटाई की आर्मर्ड शीट का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन, इसमें कंपोजिट आर्मर के लिए विशेष प्रकार की शीट का इस्तेमाल होता है। इसकी सप्लाई अभी तक नहीं हो रही है। ऐसे में जो हल बनाए गए हैं, वे जैसे के तैसे रखे हैं। ऐसे में वाहन तैयार करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पा रही। सूत्रों ने बताया कि यह शीट मिश्र धातु निगम लिमिटेड (मिधानी) से आना है, लेकिन यह प्रक्रिया धीमी है। बीच में एक दूसरी फर्म से इसे लिया जाता था, लेकिन वह बंद हो गया है। इससे उत्पादन पूरी तरह प्रभावित है।
सेना के लिए भी उपयोगी
एक से सवा करोड़ रुपए की लागत वाले इस वाहन को अत्याधुनिक बनाने के लिए कई प्रकार की तब्दीली की गई है, ताकि सेना या अद्र्धसैनिक बल जब इसका इस्तेमाल करें तो यह उनके लिए ज्यादा उपयोगी और रक्षक साबित हो। ऐसे में यह मॉडीफाइड माइन प्रोटेक्टिड वीकल हो गया है। बताया जाता है कि 250 से ज्यादा वाहन का आर्डर लंबे समय से सेना की तरफ से वीएफजे को मिला हुआ है। इसी प्रकार अर्धसैनिक बल एवं पुलिस की डिमांड भी खूब है।
यह हैं ग्राहक
थल सेना, सीआरपीएफ, बीएसएफ, छत्तीसगढ़ पुलिस, महाराष्ट्र पुलिस व अन्य राज्यों की पुलिस।
यह है खासियत
जमीन पर बिछी माइंस से बचाव, बुलेटपू्रफ कांच, फायरिंग करने के लिए पोर्ट, एयरकूल्ड, कई किलो टीएनटी के विस्फोट को सहने की क्षमता, गोलीबारी से रक्षा। 60 से 85 किमी की प्रतिघंटा की गति, 10 से 12 सैनिकों के बैठने की व्यवस्था आदि।
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