
जबलपुर। कोरोनाकाल में लॉकडाउन-अनलॉक की प्रक्रिया व ट्रेनों के बंद होने का दिवंगतजनों की अस्थियों के विसर्जन पर खासा असर पड़ा है। इसके चलते नर्मदा नदी की महत्ता भी बढ़ी है। बीते 6 माह के अरसे में अपने दिवंगतजन की अस्थियों को इलाहाबाद स्थित गंगा नदी में विसर्जन करने ले जाने के बजाय लोग यहीं नर्मदा के तटों पर विसर्जित कर रहे हैं। मुक्तिधामों में अस्थियां सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए सभी लॉकर इस 6 माह के दौरान कभी नहीं भर सके। जबकि, कोरोनाकाल में सामान्य से अधिक मृत्यु होने का दावा किया जा रहा है।
सभी जगह यही हाल
शहर के प्रमुख चारों मुक्तिधामों में कमोबेश यही हालात हैं। सभी मुक्तिधामों में बने अस्थि लॉकर्स आधी से अधिक संख्या में खाली हैं। मुक्तिधाम कार्यकर्ताओं का कहना है कि मार्च के बाद से ही अस्थियां इलाहाबाद ले जाकर विसर्जित करने का सिलसिला करीब-करीब समाप्त हो चुका है।
अधिकांश लॉकर्स खाली
गुप्तेश्वर मुक्तिधाम के सुनील पुरी गोस्वामी ने बताया कि पहले की तुलना में लोग लॉकर्स में अस्थियां कम रख रहे हैं। अधिकांश स्थानीय लोग खारीघाट व नर्मदा के अन्य घाटों में विसर्जित कर रहे हैं। जबकि बाहर के लोग ही लॉकर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। ग्वारीघाट मुक्तिधाम के गोलू पुरी गोस्वामी का कहना है कि अधिकांश स्थानीय लोग खारीघाट में ही अस्थियां विसर्जन कर रहे हैं। दूसरे स्थानों के लोग इन्हें लॉकर्स में रखकर अपनी सहूलियत के लिहाज से विसर्जन कर रहे हैं।
यह स्थिति
मुक्तिधाम- लॉकर्स- खाली
ग्वारीघाट- 36- 15
करियापाथर- 40- 20
गुप्तेश्वर- 20- 10
रानीताल- 30- 22

पितृ मोक्ष अमावस्या आज, ज्ञात-अज्ञात पुरखों का किया तर्पण
पितृ मोक्ष अमावस्या गुरुवार को है। इसे आश्विन अमावस्या और दर्श अमावस्या भी कहा जाता है। इस बार पितृ मोक्ष अमावस्या पर सूर्य संक्रांति होने सेबहुत ही शुभ संयोग बन रहा है। इससे पहले ये संयोग 1982 में बना था और अब 19 साल बाद फिर बनेगा। पितृ मोक्ष अमावस्या पर नर्मदा के घाटों व घरों में पितरों के तर्पण व श्राद्ध किए जाएंगे। ज्योतिषाचार्य सौरभ दुबे के अनुसार इस तिथि पर उन मृत लोगों के लिए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण कर्म किए जाते हैं, जिनकी मृत्यु तिथि मालूम नहीं है। साथ ही, इस बार अगर किसी मृत सदस्य का श्राद्ध करना भूल गए हैं तो उनके लिए अमावस्या पर श्राद्ध कर्म किए जा सकते हैं। मान्यता है कि पितृ पक्ष में सभी पितर देवता धरती पर अपने-अपने कुल के घरों में आते हैं और धूप-ध्यान, तर्पण आदि ग्रहण करते हैं। अमावस्या पर सभी पितर अपने पितृलोक लौट जाते हैं। सर्व पितृ अमावस्या पर सभी पितरों के लिए श्राद्ध और दान किया जाता है। इससे पितृ पूरी तरह संतुष्ट हो जाते हैं।
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