
Hindi Diwas 2020: पूरे देश में 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जा जाता है। हिन्दी ने सोशल मीडिया की प्रभावकारिता को और ज्यादा मजबूती दी है। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के हिन्दी में उपलब्ध होने और हिन्दी भाषा और फॉन्ट समÌथत मोबाइल ने आम लोगों को इसके व्यापक इस्तेमाल की सुविधा दी है। इन्हीं वजहों से सोशल मीडिया पर लोगों की पहुंच अप्रत्याशित गति से बढ़ी है। कनाडाई प्रोफेसर एवं मीडियाविद् मार्शल मैक्लुहान ने दशकों पहले जिस ग्लोबल विलेज यानी वैश्विक गांव की परिकल्पना की थी‚ सही मायने में देखा जाए तो सोशल मीडिया ने ही इसे पूरी तरह से साकार किया है।
आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था और इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। दरअसल 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी के पुरोधा व्यौहार राजेन्द्र सिंहा का 50.वां जन्मदिन था, जिन्होंने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत लंबा संघर्ष किया । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, सेठ गोविन्द दास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर व्यौहार राजेन्द्र सिंहा ने अथक प्रयास किए।
हिंदी व देवनागरी को मिली अधिकारिक मान्यता
इसके चलते उन्होंने दक्षिण भारत की कई यात्राएं भी कीं और लोगों को मनाया। लगातार प्रयासों को चलते व्यौहार राजेन्द्र सिंह के 50 वें जन्मदिवस पर 14 सितम्बर 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 के अंतर्गत हिंदी को भारतीय संघ की आधिकारिक राष्ट्रीय राजभाषा और देवनागरी को आधिकारिक राष्ट्रीय लिपि की मान्यता मिली।
क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस-
हिंदी दिवस के मौके पर देशभर के स्कूलों, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थानों में कई तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। हिंदी पूरे विश्व में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। वहीं दूसरी ओर भारत में अन्य कई भाषाएं विलुप्त हो रही हैं। जो चिंतन का विषय है। ऐसे में हिंदी की महत्ता बताने और प्रचार-प्रसार के लिए हिंदी दिवस को मनाया जाता है।
5वीं तक मातृभाषा में पढ़ाई
पीएम ने कहा, 'इस बात में कोई विवाद नहीं है कि बच्चों के घर की बोली और स्कूल में पढ़ाई की भाषा एक ही होने से बच्चों के सीखने की गति बेहतर होती है। यह एक बहुत बड़ी वजह है, जिसकी वजह से जहां तक संभव हो पांचवीं क्लास तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने पर सहमति दी गई है। इससे बच्चों की नींव तो मजबूत होगी है, उनके आगे की पढ़ाई के लिए भी उनका बेस और मजबूत होगा।'
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