
जबलपुर। जिले में डेढ़ माह में कोरोना मरीज बढकऱ पांच गुना से ज्यादा हो गए हैं। गम्भीर कोरोना मरीजों को भर्ती करने में समस्या आने पर आनन-फानन में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में कोविड बेड बढ़ाकर दोगुने किए गए। लेकिन, लगातार संक्रमित और गम्भीर मरीजों की संख्या बढऩे से स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग की तैयारियां बौनी साबित हो रही हैं। भोपाल, इंदौर की तर्ज पर अभी तक शहर में एक भी अस्पताल को कोविड डेडीकेटेड हॉस्पिटल नहीं बनाया गया। शहर के किसी सरकारी अस्पताल को सिर्फ कोविड मरीजों के लिए चुनकर बेहतर उपचार उपलब्ध कराने में भेदभाव का शिकार होने से कोरोना एक्टिव केस बढऩे के साथ मरीजों की मुश्किल बढ़ती जा रही है। एक अदद मेडिकल कॉलेज के भरोसे पूरे अंचल के गम्भीर मरीजों की कोरोना से जंग लडऩे की कवायद से संक्रमण दर बढऩे के साथ व्यवस्था लडखड़़ाती जा रही है।
भोपाल-इंदौर की तरह व्यवस्था की दरकार: गम्भीर मरीजों की बेहतर देखभाल में मुश्किल
डेढ़ माह में पांच गुना हुए कोरोना मरीज, फिर भी नहीं बना ‘डेडिकेटेड’ हॉस्पिटल

शहर के लिए बजट की कमी, अलग-अलग प्रस्ताव
कोरोना से जंग में मरीजों को बेहतर सुविधा देने के लिए शहर में मार्च-अप्रैल में ही किसी एक अस्पताल को कोविड के लिए अधिग्रहित करने का प्रस्ताव दिया गया था। संक्रमण दर बढऩे पर भी किसी एक प्राइवेट अस्पताल को कोविड डेडीकेटेड बनाने पर चर्चा हुई। ऐसी व्यवस्था संक्रमण बढऩे पर इंदौर-भोपाल में लागू की गई। प्राइवेट अस्पताल को सरकार ने लेकर कोरोना मरीजों का नि:शुल्क उपचार किया। लेकिन, शहर में कोविड डेडीकेटेड अस्पताल बनाने का प्रस्ताव बजट की कमी की आड़ में रोक दिया गया।
अस्पतालों की वास्तविक स्थिति
मेडिकल कॉलेज अस्पताल-
शहर के साथ ही सम्भाग के जिलों और दूसरे अंचल के जिलों से भी गम्भीर कोरोना मरीज रेफर होकर आ रहे है। अस्पताल में नॉन कोविड मरीजों का उपचार भी जारी है। कोरोना के गम्भीर केस लगातार बढऩे और नॉन कोविड मरीज मिलाकर दोहरा भार हो गया है।
विक्टोरिया अस्पताल- कोविड केयर सेंटर के बाद ऑक्सीजन बेड बढ़ाकर गम्भीर मरीजों के लिए सुविधाएं जुटाई गई है। नए आइसीयू बेड भी तैयार किए जा रहे है। कुछ गम्भीर मरीजों को भर्ती भी किया जा रहा है। लेकिन मरीजों को देखने के लिए वार्ड के अंदर तक डॉक्टर नहीं पहुंचने की लगातार शिकायत हो रही है।
प्राइवेट अस्पताल-
प्रशासन ने करीब 12 निजी अस्पतालों को कोविड उपचार की अनुमति दी है। इन अस्पतालों ने कोविड वार्ड बनाए गए हैं। इसमें छह से सात अस्पताल ही कोरोना संक्रमित को भर्ती कर रहे हैं। बाकी अस्पताल अभी भी कोरोना मरीज को दूसरी जगह भर्ती होने का परामर्श दे रहे हैं। इलाज कर रहे अस्पताल भी पचास साल से ज्यादा आयु वाले गम्भीर मरीज को भर्ती नहीं कर रहे हैं। कोरोना संदिग्ध की जांच में गम्भीर लक्षण की आशंका पर मेडिकल रेफर कर रहे हैं।

कम्प्लीट डेडीकेटेड हॉस्पिटल नहीं होने का खामियाजा
- कोरोना संक्रमित को भर्ती होने की जरूरत होने पर अभी अलग-अलग अस्पताल के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
- डेडीकेटेड हॉस्पिटल होने पर मरीज सीधे वहां पहुंचते। अभी भटकने में समय बर्बाद होने से उपचार में देर।
- अलग-अलग अस्पताल में पॉजिटिव और सस्पेक्ट के लिए खाली बिस्तर की जानकारी जुटाना जटिल है।
- एक ही अस्पताल में कोविड और नॉन कोविड मरीज रखने से दूसरे व्यक्तियों को वायरस ट्रांसमिशन का खतरा।
- अस्पताल अपने अनुसार कोविड शुल्क वसूल रहे हैं। नि:शुल्क उपचार की पात्रता वालों से भी फीस ले रहे हैं।
- दूसरे जिले से बेहतर उपचार के लिए आ रहे लोगों की उम्मीद बिस्तर ढूंढऩे की मारामारी में ही टूट जा रही है।
- प्रमुख अस्पतालों में कोविड वार्ड बनने के बाद नॉन कोविड गम्भीर बीमारी के पीडि़त को उपचार नहीं मिल पा रहा है।
कोरोना मीटर
1077 संदिग्धों के नमूने जांच के लिए भेजे
242 नमूनों में संक्रमण मिला
1303 एक्टिव केस
191 संक्रमित स्वस्थ होकर डिस्चार्ज
592 संक्रमित होम आइसोलेटेड
898 व्यक्तिहोम क्वारंटीन
986 व्यक्तिसंस्थागत क्वारंटीन
1050 कुल संदिग्ध
जिले में अभी तक
95348 सैम्पल की जांच
7504 व्यक्ति संक्रमित मिले
122 कोरोना संक्रमित की मौत
6079 संक्रमित स्वस्थ
37 कोरोना कंटेनमेंट एरिया
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