
जबलपुर. कोरोना टेस्ट का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। दरअसल तेज होते संक्रमण के बाद स्थानीय स्तर पर प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग ने मिल कर निजी पैथॉलजी और अस्पतालों में कोरोना जांच पर रोक लगा दी है। तर्क यह दिया जा रहा है कि निजी अस्पतालों व पैथॉलजी में जांच में अनियमितता बरती जा रहा है। ऐसे में स्थानीय प्रशासन के इस निर्णय को कोर्ट में चुनौती दी गई है।
मुख्य न्यायाधीश मो. रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने इस आवेदन को गंभीरता से लेते हुए महाधिवक्ता कार्यालय को राज्य शासन से इस सिलसिले में निर्देश हासिल कर अवगत कराने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 5 अप्रैल को निर्धारित की गई है। संज्ञान के आधार पर हाई कोर्ट में जिस मामले की सुनवाई पहले से जारी है, उसमें कोर्ट मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ की ओर से यह अंतरिम आवेदन बुधवार को दायर किया गया।
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इसमें चिंता जताते हुए निजी लैब व निजी अस्पतालों में मौखिक रूप से कोरोना टेस्ट पर रोक लगाए जाने के प्रशासिक रवैये की निंदा की गई। साथ ही कहा गया कि एक तरफ जबलपुर में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ बिना किसी शासकीय आदेश के स्थानीय प्रशासन कोरोना की जांच प्रतिबंधित कैसे कर सकता है? सिर्फ शासकीय अस्पतालों में यह व्यवस्था होने से निजी लैब व निजी अस्पतालों में जांच नहीं हो पा रही है। शासकीय अस्पतालों व लैब में जांच करवाने वालों का नंबर ही नहीं अा पा रहा है। इससे समाज में कई कोरोना पॉजिटिव खुले घूमने की आशंका उठ खड़ी हुई है।
नियमानुसार निजी लैब व निजी अस्पतालों में कोरोना जांच सीमित संख्या में यानी जो भर्ती हो गए सिर्फ उनकी जांच की छूट दिए जाने के रवैये को अविलंब बदला जाना चाहिए। ऐसा न किया गया तो जबलपुर में कोरोना का विस्फोट हो सकता है। कायदा तो यह कहता है कि जिस तरह जबलपुर के हालात बिगड़े हैं, बिना देर किए कोरंटाइन सेंटर आदि खोल दिए जाएं। कोविड गाइडलाइन का पूर्ववत पालन हो। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। यह बड़ी लापरवाही है।
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