
जबलपुर। 'देश की आजादी की लड़ाई में आजाद हिंद फौज के रणबांकुरों का हौसला देख अंगे्रज भयभीत हो गए थे। वे इतने घबराए गए कि उन्हें जल्द ही भारत छोडऩा पड़ा। इसमें नेताजी सुभाषचंद्र बोस का अभूतपूर्व योगदान था।Ó केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने जबलपुर में 'नेताजी सुभाषचंद्र बोस राष्ट्रवाद और युवा सरोकारÓ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्धाटन सत्र में मुख्य अतिथि की आसंदी से ये बातें कहीं। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के तत्वावधान में शहीद स्मारक सभा भवन गोलबाजार में आयोजित कार्यक्रम में कंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रहलाद सिंह पटेल, कोलकाता से आए नेताजी के भतीजे चंद्रकुमार बोस, रिटायर मेजर जनरल जीडी बख्शी और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी मंच पर उपस्थित थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केंद्रीय राज्यमंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा, सन् 1939 में कांग्रेस के 52वें अधिवेशन में नेताजी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के प्रत्याशी थे। उनके सम्मान में शहर में 52 हाथियों का जुलूस निकाला गया था। नेताजी जबलपुर के पास सिवनी और फिर जबलपुर की सेंट्रल जेल में राजनीतिक बंदी रहे। इन्हीं यादों को ध्यान में रखते हुए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है। उनकी 125वीं जयंती वर्ष को यादगार बनाने के लिए सालभर कार्यक्रम होंगे। बनारस से आए डॉ. राघवशरण शर्मा, जयपुर के देवेंद्र शर्मा, नई दिल्ली के प्रो. कपिल कुमार, मणिपुर के आएएस प्रेमानंद शर्मा ने भी कार्यक्रम को सम्बोधित किया। संचालन रवींद्र वाजपेयी ने किया।
दिया था राष्ट्रवाद का महामंत्र
कोलकाता से आए चंद्रकुमार बोस ने कहा कि नेताजी ने राष्ट्रवाद का जो महामंत्र दिया था, वह आज भी भारत के लिए मार्गदर्शी है। आजाद हिंद फ ौज की मार्चिंग ट्यून कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा...आज भी भारतीय सेना उत्साह के साथ गुनगुनाती है। सिंगापुर से मनीष त्रिपाठी संगोष्ठी से ऑनलाइन जुड़े। रिटायर मेजर जनरल जीडी बख्शी ने कहा कि हमें आजादी की लड़ाई का सही इतिहास नहीं बताया गया। इसे बदलने की जरूरत है। उन्होंने आजादी के संग्राम के लिए वामपंथी इतिहासकार विपिनचंद्र पाल के लिखे इतिहास पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि आजाद हिंद फौज के 26 हजार शहीद जवानों की शहादत को भुलाना इतिहास की सबसे बड़ी गलती है। अब उन्हें श्रद्धांजलि देने का वक्त आ गया है। यह तभी होगा, जब लाल किला में उनका स्मृति स्थल बने। आजादी की लड़ाई सिर्फ अहिंसा के बल पर नहीं जीती गई। इसमें नेताजी का भी बड़ा योगदान था। उन्होंने इंडिया गेट वॉर मेमोरियल की खाली छतरी के नीचे नेताजी की प्रतिमा स्थापित करने की मांग भी उठाई।
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