mukti from Thalassemia : मासूम कलाई पर सुई चुभने के दर्द से आह निकलती है तो ‘मुक्ति’ देती है सहारा

लाली कोष्टा@जबलपुर। कोई चंद महीनों का है तो किसी ने अपने जन्मदिन का एक वर्ष ही पूरा किया है। वे अपने दर्द और तकलीफ को शब्दों में बयां तो नहीं कर सकते लेकिन नाजुक हाथों में चुभती सुइयां उन्हें नई जिंदगी की ओर ले जाती हैं। उनके इस दर्द को मुस्कुराहट में बदलने के लिए ‘मुक्ति’ सहारा बनकर सामने आती है।

जबलपुर निवासी डॉ. विवेक जैन पेशे से एक फिजीशियन हैं। वे अक्सर जरूरतमंदों को कपड़े, दवाएं आदि बांटने विक्टोरिया अस्पताल जाया करते थे। जहां उनकी नजर थैलीसीमिया पीडि़त बच्चों पर पड़ती थी। उनके परिजन खून की एक एक बूंद के लिए संघर्ष करते नजर आते, तो कोई इलाज के लिए दर दर भटकता दिखाई देता था। बच्चों को जब खून चढ़ता तो मोटी सुई की चुभन के दर्द से पूरा वार्ड गूंज उठता था जिसे देखकर डॉ. विवेक जैन द्रवित हो गए। फिर उन्होंने अस्पताल परिसर में खड़े होकर शपथ ली कि अब पूरा जीवन थैलीसीमिया पीडि़तों की सेवा में लगा देंगे... और इसी के साथ 17 दिसंबर 2017 को उन्होंने मुक्ति फाउंडेशन की नींव रखी।

थैलीसीमिया पीडि़तों की हर संभव मदद
डॉ. विवेक जैन बताते हैं कि उनका मुक्ति फाउंडेशन मुख्य रूप से थैलीसीमिया पीडि़त बच्चों के लिए काम करता है। जिसमें उन्हें हर रोज एक यूनिट ब्लड की आवश्यकता होती है। डोनर को खोजने से लेकर पीडि़त को लगवाने तक का जिम्मा रोज का है। इसमें विक्टोरिया अस्पताल के डॉक्टरों का विशेष सहयोग मिलता है। साथ ही रेग्युलर डोनर भी खोज रखे हैं जो तय समय पर पीडि़तों के लिए नि:शुल्क ब्लड देकर जाते हैं। एक थैलीसीमिया पीडि़त को 100 ग्राम से लेकर 3 बॉटल तक ब्लड की जरूरत होती है। जिसे मुक्ति फाउंडेशन हर हाल में उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध रहती है।

 

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खुद के खर्चे पर चल रही संस्था
डॉ. विवेक जैन के अनुसार मुक्ति फाउंडेशन बिना किसी सरकारी आर्थिक मदद के काम कर रही है। इसका पूरा खर्चा स्वयं के जेब से एवं सदस्यों व जनसहयोग से वहन किया जाता है। जिले में करीब 130 थैलीसीमिया पीडि़त रजिस्टर्ड हैं, वहीं मप्र में करीब 2000 रोगी हैं। जिन्हें बिना शासकीय सहायता के स्वयं अपना इलाज कराना पड़ रहा है। सरकार द्वारा कोई विशेष व्यवस्था इनके लिए अभी नहीं है। कुछ गोलियां अब दी जाने लगी हैं, वहीं नगर निगम के माध्यम से पीडि़तों को महीने में कुछ पैसे दिए जाने लगे हैं।

लॉकडाउन सबसे कठिन समय देखा
मुक्ति फाउंडेशन द्वारा लॉकडाउन में थैलीसीमिया पीडि़तों को खून चढ़वाने के लिए उनके घर से लाने और फिर छोडऩे तक का काम किया गया। डॉ. जैन ने बताया कि कई बार वाहनों के आने जाने पर पुलिस सख्ती करती थी, लेकिन हर हाल में पीडि़तों को ब्लड लगवाया और घर छोडकऱ आए ये सबसे कठिन दौर था।

राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़ रही संस्था
मुक्ति फाउंडेशन राष्ट्रीय स्तर पर थैलीसीमिया पीडि़तों के लिए काम करने वाली शासकीय और निजी संस्थाओं से जुड़ गई है, संस्था अब अमेरिका की इंटर नेशनल थैलीसीमिया वेलफेयर एसोसिएशन जिनेवा से जुडऩे वाली है। इसके लिए आवेदन भेज दिया गया है। मध्य भारत की पहली संस्था है जो थैलीसीमिया पीडि़तों के लिए समर्पित है। मुक्ति फाउंडेशन में अध्यक्ष आरध्ना साहू, भैरवी विश्वरूप, सनी पाल सिंह,
आयुष गुप्ता, स्नेहा सिंह, प्रेरणा सिंह, पायल मोटवानी, बबलू पटवा समेत अन्य सदस्यों की सक्रियता निरंतर बनी रहती है।


ये भी सेवाएं चल रहीं
एफएआईटीएच के माध्यम से थैलीसीमिया जागरुकता अभियान
कैंसर जागरुकता के लिए मिशन पिंक
अर्पण और समर्पण से सुदामा थाली व कपड़ों का वितरण
नि:शुल्क हेल्थ चेकअप कैंप
सुपोषण से समृद्धि द्वारा महिलाओं में जन जागरण
रक्तदान शिविरों का आयोजन



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