
जबलपुर. देश की पवित्र नदियां जिन्हें हमने मां का दर्जा दिया है, वो सभी बेहाल हैं। चाहे मां गंगा हों, यमुना हों या मां नर्मदा। इन नदियों की साफ-सफाई के दावे तो बहुत किए जाते हैं। पैसा भी अरबों-खरबों बह गया सफाई के नाम पर, लेकिन नहीं आए अच्छे दिन। हाल ये है कि इन नदियों में न केवल नालों का गंदा पानी गिराया जा रहा है बल्कि फैक्ट्रियों से निकलने वाला विषाक्त रसायन भी अविरल बह रहा है। ऐसे में इन नदियों का जल पीना तो दूर आचमन लायक भी नहीं रह गया।
बात पवित्र नर्मदा की की जाय तो इसमें मिलने वाला विषाक्त पानी नदी के पवित्र जल को जहर बना रहा है। तमाम सामाजि व धार्मिक संस्थाएं मां नर्मदा को बचाने के लिए आगे आती हैं, धरना-प्रदर्शन कर सरकार को ज्ञापन भी दिया जाता है। मगर मिलता सिर्फ कोरा आश्वासन ही है। शासन-प्रशासन के स्तर से नदियों की बचाने के लिए जमीनी स्तर पर कोई सकारात्मक पहल होती नहीं दिख रही, जबकि नदियों की अविरलता और निर्मलता को अक्षुण्ण रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट से लेकर एनजीटी तक लगातार निर्देश दे रहे हैं। पर इस ओर किसी का ध्यना नहीं। ऐसे में देश की धर्मप्राण जनता इस प्रदूषित जल में ही अपने धार्मिक कृत्य करने को मजबूर है।

जबलपुर के मुख्य घाट में शामिल ग्वारीघाट पर ही कई नाले मिल रहे हैं। खास बात यह है कि इस घाट पर प्रशासनिक अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि भी जाते हैं लेकिन किसी को नदी में गिरते गंदे पानी रोकने की तनिक भी चिंता नहीं। खारीघाट से लेकर सिद्धघाट तक तीन बड़े नाले हैं और कई छोटी नालियां हैं जिनका गंदा व विषैला पानी सीधे नदी में गिर रही हैं।
मध्य क्षेत्र के विधायक विनय सक्सेना कहते हैं कि जो नाले मिल रहे हैं वहां प्राकृतिक प्लांट लगाना चाहिए। सीमेंट की बोरियों में रेत भरकर रखा जाए ताकि कुछ सुधार हो। इस बारे में कई बार सदन का ध्यान आकृष्ट करा चुका हूं। अब जबलपुर और भोपाल स्तर पर यह मुद्दा उठाउंगा। सरकार ने नर्मदा को जीवित इकाई घोषित किया है लेकिन यह नाकामी है कि रेत माफिया के आगे उसने घुटने टेक दिए हैं। मैंने इस बारे में सीएम को पत्र लिखा है।
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