बच्ची की जान सिर्फ कुत्तों ने नहीं, नकारा-पत्थरदिल जिम्मेदारों ने ली है!

जबलपुर। खूंखार आवारा कुत्तों के झुंड ने बीच जबलपुर शहर घर के सामने खेल रही डेढ़ साल की बच्ची को नोच खाया। जब तक उसकी मां पहुंची, परिवार की राजदुलारी मरणासन्न हो गई थी। इतना खून बह चुका था कि चिकित्सक भी उसकी जान नहीं बचा पाए। मासूम लाड़ली की बेहद वीभत्स मौत। सुनकर किसी की भी रूह कांप उठे। सोचकर कलेजा मुंह को आ जाए। लेकिन, नगर निगम के नकारा जिम्मेदारों को शायद ही मासूम चीख सुनाई पड़ी हो? इस घटना के बाद यह भी साबित होता है कि जिम्मेदारों के कान के पर्दे शायद 'पत्थरÓ के हो गए हैं? आवार कुत्तों का आतंक पूरे शहर में लम्बे समय से है। लेकिन, यह घटना तो दहलाने वाली है। 'कुत्ते तो कुत्तेÓ ही हैं। उन्हें भला मासूम बच्ची की जान की परवाह क्यों होने लगी? सवाल यह है कि निगम के जिम्मेदारों ने खूंखारों के आतंक को इतना कम क्यों मान रखा है? बच्ची की मौत खबर सुनने के बाद क्या उन्हें नींद आ जाएगी? यदि नींद आ गई, तो समझा जा सकता है कि उनमें तनिक भी संवेदनशीलता नहीं रह गई है। पूरा शहर उम्मीद कर रहा होगा कि मासूम की मौत जाया नहीं जाएगी।
घर के बाहर खेल रही थी
माढ़ोताल थाना क्षेत्र के कठौंदा में शनिवार को कुत्तों का झुंड घर के बाहर खेल रही डेढ़ साल की बच्ची पर टूट पड़ा। गम्भीर रूप से घायल बच्ची को मेडिकल में भर्ती कराया गया। वहां उसने रविवार को दम तोड़ दिया। माढ़ोताल पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम करवाते हुए जांच शुरू कर दी है। कठौंदा निवासी सुशील श्रीवास्तव ने बताया कि वह पत्नी वर्षा, तीन वर्षीय बेटे विवेक और डेढ़ साल की बेटी दीपाली के साथ रहता था। शनिवार को वह काम पर गया था। विवेक और दीपाली घर के बाहर खेल रहे थे। बुखार होने के कारण वर्षा घर के भीतर थी। इस दौरान कुत्तों का झुंड दीपाली पर टूट पड़ा। रोने की आवाज सुनकर वर्षा बाहर आई और कुत्तों को भगाया, लेकिन तब तक दीपाली लहूलुहान हो गई थी। जानकारी लगते ही सुशील घर पहुंचा। दीपाली को मेडिकल ले जाया गया। लेकिन, रविवार दोपहर उसने दम तोड़ दिया।



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