कितना स्वार्थी हो गया इंसान! आशीर्वाद लेने आए थे, बदले में नर्मदा के अमृततुल्य पानी में कचरे का अम्बार लगा गए

तटों से निकला कचरा
- 15 टन कचरा निकला ग्वारीघाट से
- 2.5 टन के लगभग कचरा निकलता है सामान्य दिनों में
- 85-85 सफाई कर्मियों ने दो शिफ्ट में की सफाई
- 06 टन कचरा निकला तिलवाराघाट में
- 01 टन के लगभग कचरा निकलता है सामान्य दिनों में
- 35-35 सफाईकर्मी की थी दो शिफ्ट में तैनताी
- 18 कर्मियों ने रात में की सफाई

जबलपुर। पुण्य सलिला मां नर्मदा का जन्मोत्सव मनाने के बाद जबलपुर में लोग पूजन सामग्री, पॉलीथिन, डिस्पोजल, दोने-पत्तल तटों पर ही छोड़ गए। आयोजन के बाद ग्वारीघाट और तिलवाराघाट में सामान्य दिनों के मुकाबले सात गुना ज्यादा 21 टन कचरा निकला। नर्मदा के प्रवाह क्षेत्र से नावों से फूल-माला व अन्य सामग्री निकाली गई। पूजन सामग्री व कचरा एकत्र करने के लिए तटों और भंडारा स्थलों पर डस्टबिन रखवाई गई थीं। लेकिन, कहीं भी इनका उपयोग नहीं हुआ। कार्यक्रम स्थलों पर चारों ओर दोना-पत्तलों का ढेर लगा था। नर्मदा जयंती पर ग्वारीघाट और तिलवाराघाट पहुंचमार्ग पर कई जगह भंडारों का आयोजन किया गया था। दोनों मार्गों पर भंडारा स्थलों के आसपास दोना-पत्तल और डिस्पोजल का ढेर लगा था। नर्मदा जयंती पर शहर में कई स्थानों पर नर्मदा प्रतिमा स्थापित की गई थीं। इन प्रतिमाओं को ग्वारीघाट और तिलवाराघाट में बने विसर्जन कुंड में विसर्जित किया गया। तिलवारा स्थित कुं ड में 14 नर्मदा प्रतिमाओं का विसर्जन हुआ।
आस्था के मायने क्या हैं?
जबलपुर के नर्मदा के तटों की हालत देखकर तमाम लोगों ने सवाल उठाया है कि आखिर आस्था के मायने क्या हैं? जिस नर्मदा को मां मानते हैं, उसमें भला कचरे का अम्बार लगाने में हाथ क्यों नहीं कांपता? कोई भी किताब यह नहीं बताती कि नदियों के शुद्ध जल को आस्था के नाम पर प्रदूषित कर दिया जाए। सामाजिक संगठनों की जिम्मेदारियां भी कहीं नजर नहीं आ रहीं।



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