डेढ़ साल की मासूम को कुत्तों ने काटा, डॉक्टरों ने ऑपरेशन भी किया पर नहीं बच सकी जान

जबलपुर/ मध्य प्रदेश के जबलपुर में आवारा कुत्तों का आतंक लगातार बढ़ाता जा रहा है। कुत्तों के हमले और काटने की घटनाएं यहां आए दिन सुनन् को मिलती रहती हैं। वहीं. इस बार इन आवारा कुत्तों ने अपना शिकार एक डेढ़ साल की मासूम बच्ची को बनाया है। दरअसल, जबलपुर जिले के कठौंदा में अपने घर के बाहर भाई के साथ खेल रही डेढ़ साल की दीपाली को आवारा कुत्तों ने बुरी तरह से नोच डाला। मां ने बच्ची की चीख सुनकर किसी तरह कुत्तों के चंगुल से अपनी मासूम बच्ची को छुड़ाया, लेकिन तब तक दीपाली लहूलुहान हो चुकी थी। परिवार द्वारा तुरंत बच्ची को अस्पताल ले जाया गया, जहां उपचार के दौरान दीपाली ने दम तोड़ दिया।

 

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ग्रामीणों का नगर निगम पर गंभीर आरोप

घटना शुक्रवार शाम है, गंभीर रूप से घायल बच्ची को बचाने के लिये शनिवार को उसका ऑपरेशन भी किया गया था, लेकिन रविवार को एक बार फिर बच्ची की हालत बिगड़ने लगी, जिसके बाद सोमवार को आखिरकार वो जिंदगी की जंग हार ही गई। इधर, मृतक बच्ची के परिवार और आसपास के लोगों का आरोप है कि, नगर निगम द्वारा आसपास के शहरों से कुत्ते लाकर कठौंदा में छोड़ रहे हैं, जिसके चलते यहां कुत्तों की तादाद बहुत ज्यादा है। इसके अलावा, इलाके के लोगों ने ये भी बताया कि, कठौंदा में मृत पशुओं का चमड़ा उतारा जाता है, यही वजह है कि, यहां के कुत्ते दिन ब दिन इतने हिंसक हो रहे हैं।

 

इस दौरान घटी वारदात

जानकारी के अनुसार कठौंदा निवासी सुशील श्रीवास्तव मजदूरी करते हैं। वह शुक्रवार सुबह काम पर चले गए थे। घर पर पत्नी वर्षा श्रीवास्तव और उसके दोनों बच्चे तीन साल का बेटा विवेक और डेढ़ साल की बेटी दीपाली उर्फ गुड़िया थे। माढ़ोताल पुलिस के मुताबिक वर्षा घर के काम में लगी थी। घर के सामने दोनों बच्चे खेल रहे थे, तभी कुत्तों का झुंड मासूम पर टूट पड़े।

 

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काट काटकर लहूलुहान कर दिया

घटना की प्रत्यक्षदर्शी मृतक मासूम की मां वर्षा ने बताया कि, पांच-छह कुत्तों ने एक साथ उसकी मासूम दीपाली पर हमला किया था। वो चीख रही थी और कुत्ते उसे नोंच रहे थे। जैसे तैसे कुत्तों के मूंह से मां ने अपनी बच्ची को छुड़ाया, लेकिन तब तक कुत्ते मासूम को बुरी तरह नोंचकर लहुलुहान कर चुके थे। इसके बाद वर्षा ने घटना की सूचना पति सुशील को दी। काम छोड़कर वह घर पहुंचा और बेटी को लेकर मेडिकल पहुंचा। वहां दो दिन तक उसका इलाज किया गया। शनिवार को उसका ऑपरेशन भी हुआ। खून भी चढ़ाया गया, लेकिन इस सब के बावजूद भी मासूम को बचाया न जा सका।


सोमवार को हुआ मासूम का अंतिम संस्कार

सोमवार को बच्ची के शव का पोस्टमार्टम कर अस्पताल ने शव माता-पिता के सुपुर्द कर दिया है। पिता सुशील श्रीवास्तव ने बेटी को तिलवारा घाट पर अंतिम विदाई दी। सुशील के मुताबिक, उसकी दो संतानों में एक बेटा और बेटी थी। आर्थिक तंगी के बावजूद परिवार खुश था, लेकिन इस हृदय विदारक घटना ने परिवार को तोड़ दिया है। सुशील ने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि, नगर निगम शहर भर के आवारा कुत्तों को कठौंदा में लाकर नसबंदी करके वहीं छोड़ रहा है। यही कारण है कि, यहां लगातार इस तरह की घटनाएं देखने को मिल रही हैं।

 

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नसबंदी के बावजूद तेजी से बढ़ रही यहां कुत्तों की संख्या

साल 2013 में कराए गए सर्वे में सामने आया था कि, जिले भर में आवारा कुत्तों की संख्या 40 हजार थी। इसके बाद दुर्ग की एनीमल फाउंडेशन केयर को कुत्तों की संख्या पर काबू करने के लिए नसबंदी करने का ठेका दिया गया था। इस फर्म को निगम से एक कुतियां की नसबंदी के एवज में 650 रुपए और कुत्ते की नसबंदी के 450 रुपए दिये जाते थे। लेकिन, मौजूदा समय में नगर निगम द्वारा ये ठेका बदलकर बंगलामुखी फाउंडेशन को दे दिया है। साथ ही, हर नसबंदी के एवज में कंपनी को 700 रुपए का भुगतान किया जाता है। कंपनी के मुताबिक, जिले भर में धड़ल्ले से नसबंदी की जा रही है, बावजूद इसके मौजूदा समय में जिले में कुत्तों की संख्या एक लाख पार जा पहुंची है, जो बेहद चौंकाने वाली बात है।


ये है कुत्तों के खूंखार होने का कारण

वेटरनरी के रिटायर्ड चिकित्सक ए.के श्रीवास्तव का कहना है कि, कठौंदा में ही कुत्तों की नसबंदी होती है और यही वो इलाका है, जहां जिलेभर के मृत पशुओं का चमड़ा भी उतारा जाता है, जिसका सेवन करने ये यहां के अधिकतर कुत्ते खूंखार हो गए हैं। हालांकि, नियम ये है कि, शहर के जिस इलाके से नसबंदी के लिये कुत्तों को पकड़ा जाएं, नसबंदी के बाद उन्हें वहीं दौबारा छोड़ना होता है, लेकिन ठेकेदार कुत्तों को नसबंदी के बाद कठौंदा में ही छोड़ देते हैं, जिसके चलते यहां कुत्तों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

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