एक बच्ची की दो माएं, दोनों को चाहिए बच्ची, कोर्ट ने सुनाया ये फैसला

जबलपुर। मप्र हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि बच्चे को जन्म देने वाली मां से लेकर बच्चे की अभिरक्षा गोद लेने का दावा करने वाली महिला को देने के लिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी नहीं की जा सकती। चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने कहा कि गोद लेने का दावा करने वाली महिला को इस मामले में सक्षम न्यायालय की शरण लेने की छूट है। इस मत के साथ कोर्ट ने एक रिट अपील खारिज कर दी।

हाईकोर्ट ने कहा, गोद लेने का दावा करने वाली महिला की अपील खारिज
मां से बच्चे की अभिरक्षा लेने के लिए नहीं जारी कर सकते आदेश

जबलपुर के अधारताल में रहने वाली संजना सोविया की ओर से यह अपील दायर की गई। अपील में कहा गया कि पनागर निवासी सोफिया भालेराव 4 वर्ष की बच्ची की मां है। संजना ने सोफिया से इस बच्ची को विधिवत गोदनामा के जरिए गोद लिया था। अधिवक्ता उमेश श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि एक दिन बच्ची को खिलने के बहाने सोफिया अपने साथ ले गई। लेकिन उसने बच्ची को दोबारा वापस नहीं लौटाया। जब संजना बच्ची को लेने पहुंची तो सोफिया ने उसे देने से इनकार कर दिया। इस पर हाईकोर्ट में बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई।

यह याचिका कोर्ट ने 3 मई 2019 को खारिज कर दी। इस आदेश के खिलाफ यह अपील दायर की गई। वहीं जन्मदात्री मां सोफिया की ओर से अधिवक्ता पवन कुमार सक्सेना ने कोर्ट को बताया कि जिस गोदनामा के जरिए बच्ची को गोद लेने का दावा किया जा रहा है, वह फर्जी है। सोफिया की जानकारी के बिना धोखे से उक्त कागजात पर उसके दस्तखत ले लिए गए थे। अंतिम सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि बच्चे का प्रथम संरक्षक उसकी प्राकृतिक माता है। इसलिए महज इस विवाद के चलते उससे बच्चे का संरक्षण का अधिकार वापस नहीं लिया जा सकता। गोदनामा का विवाद बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका में नहीं विचारित किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि सिंगल बेंच का आदेश उचित था, इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। यह कहकर कोर्ट ने अपील निरस्त कर दी। सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता ब्रह्मदत्त सिंह उपस्थित हुए।



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