
लाली कोष्टा@जबलपुर। वो एक सम्पन्न घर परिवार से ताल्लुक रखती है। उसके कहने से पहले उसकी मनचाही चीज हाजिर हो जाती है, इतने के बाद भी वो नंगे पैर जंगलों, बीहड़ों और पहाड़ों पर जीवन की तलाश और उसके संरक्षण का चिंतन मनन करती है। जी हां. हम बात कर रहे हैं नर्मदा परिक्रमावासी शिप्रा पाठक की। जिसके पिता पिता डॉक्टर शैलेष पाठक, समाजसेवी, दादी स्व. संतोष कुमारी पाठक दातागंज बदायूं उप्र से 4 बार की विधायक रह चुकी हैं। लेकिन शिप्रा वैराग्य, आध्यात्म की राह पर चल पड़ी है। शिप्रा ने अपना जीवन नर्मदा जल को समर्पित कर दिया है। वे दुनिया को जल रूपी अमृत से अवगत करा रही हैं। कभी नर्मदा तो कभी गंगा यमुना या फिर शिप्रा किनारे उनकी बूंदों का महत्व बता रही हैं। उनके इस समर्पण त्याग को देखकर लोग वॉटर वुमन कहने लगे हैं। फॉलोअर्स ने सोशल मीडिया पर इस नाम से उनके पेज भी बनाए हैं, जिन्हें लोग खूब पसंद कर रहे हैं।
गंगा की शिप्रा ने नर्मदा को समर्पित कर दिया जीवन, कहलाई वॉटर वुमन
नर्मदा परिक्रमा से हुआ ह्रदय परिवर्तन तो जल को बचाने पूरी जिंदगी दे दी

शिव से निकली हूं... शिव में समाना है
शिप्रा कहती हैं कि घरेलू वातावरण में आध्यात्म के दर्शन बचपन से हुए हैं। बचपन से मनन करती रही हूं। नर्मदा के संपर्क में आई और उनके बारे में जब जाना तो मैं इकतरफा आकर्षित हुई उनके चरणों में। नर्मदा पिता शिव के करीब रही हैं अनंतकाल से, वे शिव से निकलीं और शिव में ही समा गई हैं। नर्मदा ने बताया कि पिता की बेटी बनकर समर्पित होना भी नारी का जीवन है। न कि पति, मां या अन्य रिश्तों को निभाकर दुनिया को अलविदा कह जाना नारी का जीवन है। नर्मदा मुझे सखी लगती हैं, वे मां से ज्यादा सुंदर दिखाई देती हैं सखी के रूप में। अब मैं भी उनकी राह पर चल पड़ी हूं। अंत में शिव में ही समा जाउंगी।
विपरीत दिशा में कैसे जीते हैं नर्मदा बताती है
शिप्रा के अनुसार नर्मदा दुनिया की एकमात्र ऐसी नदी जो विपरीत दिशा में बहती है। जो जीवन के संघर्षों को हंसते हुए पार करने की प्रेरणा देती है। लेकिन लोग अक्सर उसे केवल एक पूज्य नदी या जल स्रोत मानकर पूजन करते हैं। जबकि उसके संघर्षों को कोई भी देखना नहीं चाहता। वो जीवंत है, किसी ग्लेशियर या अन्य जल स्रोतों के भरोसे नहीं बहती। ये नारी के रूप और चरित्र को बयान करती है, जिसे हम देखना भूल जाते हैं। बचपन से ही किसी राम की सीता बनना नहीं चाहती रही, बल्कि जनक की जानकी बनने का सपना रहा है।

पग पग से नापी नर्मदा की लहरें
नवंबर 2018 में नर्मदा परिक्रमा ओंकारेश्वर से शुरू करते हुए महज 108 दिनों में नर्मदा जन्मोत्सव पर फरवरी 2019 में ओंकारेश्वर में ही सम्पन्न की। इस दौरान शिप्रा पाठक ने नर्मदा को करीब से देखा और जाना कि जिस दिन स्त्री अपने पर आ जाए तो वह कई रचनात्मक परिवर्तन कर सकती है। वहीं शास्त्रों के अनुसार दुनिया की सबसे पुरानी नदी भी नर्मदा मानी गई है, इसकी विलुप्तता से सृष्टि ही खत्म हो जाएगी।
स्वसमर्पित होने से बचेगी नर्मदा
नर्मदा परिक्रमा के दौरान जल संरक्षण और उसके दुरुपयोग को देखकर मन विचलित हुआ तो शिप्रा ने घाटों पर उतरकर सफाई की और लोगों को प्रेरित किया। अंतत: शिप्रा ने स्वयं को जल को समर्पित कर दिया। उनकी सेवा और समर्पण को देखकर लोगों ने उन्हें ‘वॉटर वुमन’ का नाम दिया है। शिप्रा ने कहती हैं कि नर्मदा के संरक्षण में केवल बातें नहीं काम की आवश्यकता है। जो लोग इसके प्रति समर्पित हैं, वे बिना शोर करे काम कर रहे हैं, वहीं अधिकतर लोग शोर ज्यादा काम न के बराबर कर रहे हैं। हमें इस नदी या माता को जीवनदायी बनाए रखने के लिए स्वसमर्पित की भावना को जागृत करना होगा।

जल के आदेश पर ही जीवन
शिप्रा पाठक नर्मदा से इतनी गहराई से जुड़ गई हैं कि वे अपने भविष्य को ही उनके निर्णय पर छोड़ दिया है। वे कहती हैं कि जीवन में गृहस्थ रहेंगी या सन्यासी बनेंगी ये निर्णय माता नर्मदा ही तय करेंगी। किंतु वे जब तक जिएंगी नर्मदा समेत जल की हर बूंद को संरक्षित करती रहेंगी।
झोपड़ी वाले सबसे अमीर
शिप्रा ने बताया कि नर्मदा परिक्रमा में समाज का एक अलग ही चेहरा देखने मिला। जो सम्पन्न थे वे परिक्रमावासियों या जरूरतमंदों के लिए भारी मन से या दिखावे की ही सेवा कर रहे थे, जबकि झोपड़ी वाले जिनके चूल्हे एक दो दिन में ही जलते हैं, वे खुलकर सेवा भाव में जुट जाते हैं। नर्मदा को बचाने में यही निचला तबका सबसे आगे है, जबकि शहरों में लोग दिखावे से दूषित कर रहे हैं।
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