यहां दिवाली की रात जागती हैं महालक्ष्मी, तंत्र साधना से धन प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है ये मंदिर

जबलपुर. गोंडवाना साम्राज्य में प्राकृतिक सम्पदा हमेशा से रही है। यहां के राजा-रानी भी प्रकृति को विशेष महत्व देते थे। इसीलिए गोंडवाना काल में धन की देवी लक्ष्मी पुरवा स्थित कमलासनी माला देवी की दीपावली पर विशेष साधना होती थी। देवी के सिद्ध स्थलों में अलसुबह से लेकर देर रात तक विशेष पूजन-अनुष्ठान होते थे। इतिहासकारों के अनुसार साम्राज्ञी रानी दुर्गावती के साम्राज्य में धन की देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती थी। उनके राज्य आर्थिक रूप से इतना समृद्ध था कि कर भुगतान में हाथी दिया जाता था। यही कारण था कि साम्राज्ञी ने अपने राजकोष से 52 तालाब, 84 तलैये और बड़ी संख्या में बावड़ी खुदवाईं। ताकि, पानी की कमी न रहे, खेतों में सिंचाई के पर्याप्त संसाधन रहें और अच्छी उपज हो। बताया तो यहां तक जाता है कि मुगलों के आक्रमण के दौरान भी माला देवी की साधना गोंडवाना राज्य के लोगों के लिए बड़ा संबल बनी।

प्रकृति के करीब था रानी दुर्गावती का साम्राज्य, पुरवा की कमलासनी माला देवी की होती थी विशेष साधना
सिद्ध स्थलों में होता था पूजन-अनुष्ठान

पचमठा मंदिर में होता था विशेष पूजन
पचमठा मंदिर गढ़ा में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा है, यह यमुना से लाई गई थी। उनका दीपावली पर विशेष पूजन होता था। इसके साथ ही पुरवा स्थित कमलासनी लक्ष्मी माला देवी का विशेष-अनुष्ठान किया जाता था। उन्हें गोंडवाना साम्राज्य कुल देवी मानता था। उनके पूजन के लिए मंदिर के आसपास दीपमाला सजाई जाती थी। पूरी नगरी में रोशनी की जाती थी। नगरी में पांच दिन का भव्य आयोजन होता था। मान्यता है कि गोंडवाना शासकों ने जो भी मनोकामना माला देवी के समक्ष रखीं, वे पूरी होती थीं।


गोंडवाना साम्राज्य की कुल देवी कमलासनी माला देवी थीं, जो देवी लक्ष्मी का स्वरूप हैं। ऐसे संदर्भ मिलते हैं कि रानी दुर्गावती के काल में दीपावली पर माला देवी का विशेष पूजन-अनुष्ठान होता था। पूरी नगरी को दीपों से प्रकाशमान किया जाता था, ऐसी मान्यता है कि इस सिद्ध देवी स्थल से गोंड शासकों की मनोकामना पूरी होती थी।
- राजकुमार गुप्ता, पुरातत्वविद् व इतिहासकार



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