
जबलपुर. हर शहर के व्यंजन की खूबियां होती हैं। जबलपुर में कई चीजें हैं जिनका स्वाद हमेशा याद रहता है। स्वाद के कारण यह चीजें शहर तक सीमित नहीं रहती। इनकी पसंद का दायरा दूसरे राज्य से लेकर विदेशों तक है। खोवा की जलेबी भी इनमें एक है। जिसने एक बार इसे खाया, वह स्वाद नहीं भूल पाता। जगदीश प्रसाद अग्रवाल की उम्र 84 वर्ष हो गई है। 14 वर्ष की उम्र से अभी तक उन्होंने जलेबी को खाना नहीं छोड़ा। जब मन आया वे कमानिया गेट के पास बडक़ुल होटल पहुंच जाते हैं। कुछ दूसरी जगह भी हैं जहां इस मिठाई को बहुत ही अपनेपन के साथ बनाकर बेचा जाता है।
बडक़ुल होटल में तो चौथी पीढ़ी इस जलेबी को तैयार करने का काम कर रही है। शुरुआत हर प्रसाद बडक़ुल ने की थी। अब उनके नाती चंद्र प्रकाश एवं मनीष बडक़ुल इस व्यवसाय को सम्भाल रहे हैं। खोवा की जलेबी की सप्लाई बड़े-बड़े शहरों में होती है। इनमें मुम्बई, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान के अलावा दूसरे राज्य शामिल हैं। इसे विशेष पैकिंग में भेजा जाता है। पांच से छह दिन तक भी इसके स्वाद में कोई परिवर्तन नहीं आता। इसलिए इसे भेजना भी आसान होता है। मांग अधिक होने से पूर्व में रेलवे स्टेशन पर जबलपुर की पहचान के रूप में इसे बेचने का काम किया गया था। यात्रियों को यह बेहद पसंद आई।
शुद्ध घी में होती है तैयार
खोवा की जलेबी को तैयार करने के लिए शुद्ध घी का इस्तेमाल किया जाता है। बडक़ुल होटल के सोहनलाल विश्वकर्मा ने बताया कि काफी दूर-दूर से लोग इसे खरीदने के लिए आते हैं। इनमें देश से लेकर विदेश में रहने वाले भारतीय भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि तेखुर नाम का तत्व इस मिठाई का बड़ा अवयव है। यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है।
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