women proud: नारी रूपेण संस्थिता...दिखे शरीर पर कीड़े तो कराह उठी आत्मा, ये लडक़ी लावारिसों की बनी ‘आसरा’

जबलपुर। जिस उम्र में लड़कियां सजना संवरना और घूमना फिरना पसंद करती हैं, उस उम्र दीन हीन, असहायों और घांवों में लगे कीड़े जिन लावारिसों को पल पल खा रहे होते हैं उनकी सेवा कौन करता है। आमतौर पर कोई भी उनके पास जाने की सोचता भी नहीं है, किंतु जबलपुर संभाग के अंतर्गत आने वाले सिवनी जिले में एक युवती ऐसी भी पिछले पांच सालों से दरिद्र नारायण की सेवा में लगी है। उसने समाज सेवा की एक ऐसी मिसाल पेश की है जो हर किसी के बस की बात नहीं है।

खुद साफ किए कीड़े, मिला आशीर्वाद

सिवनी निवासी नाजनीन (रोज) कुरैशी 33 वर्ष पेशे से बुटिक संचालक व ब्यूटीशियन हैं। जब वे 26 साल की थी, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। जिससे वे उदास रहा करती थीं। उन्होंने बताया कि एक दिन बच्ची को स्कूल छोडऩे जा रहीं थीं तब एक आदमी जिसके शरीर पर कीड़े लगे थे, उसके अंग गल रहे थे वह तड़प रहा था किंतु उसके पास कोई नहीं आया। तब रोज कुरैशी वहां रुकीं और उससे बात करने की कोशिश की। जिसके बाद उसे खाना खिलाया, इलाज की व्यवस्था की और स्वयं उसके शरीर से कीड़े हटाने लगीं। उस व्यक्ति ने सेवा के बदले कहा तुम्हारी राह के कांटे फूल बन जाएंगे, हर पथरीला रास्ता सुखद हो जाएगा। इस आशीर्वाद के बाद लगा कि शायद स्वर्गीय पिताजी का आशीर्वाद है ये, सेवा से ही खुदा को पाया जा सकता है।

 

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शुरू की आसरा की रसोई, गली गली खिलाती हैं खाना
रोज कुरैशी ने बताया कि आसरा की रसोई पिछले छह साल से चला रही हैं। रसोई के लिए रोज स्वयं के खर्चें से पांच सालों से चला रहीं थीं, लॉकडाउन में लोगों से सहयोग की बात की तो उन्हें मदद मिली। रोज सितम्बर तक गली गली मानसिक विक्षिप्त, लावारिस और दीन दुखी मरीजों को भोजन कराने के लिए जाती थीं, 2 अक्टूबर से उन्होंने दल सागर के पास स्थित लायब्रेरी परिसर में शाम 7 बजे से भोजन कराती हैं। इसके लिए कुछ लोग स्वयं आ जाते हैं, वहीं कुछ को सहयोगी ऑटो चालक की मदद से भोजन स्थल तक लेकर आती हैं। रोजाना करीब 2 दर्जन लोगों को आसरा की रसोई से भोजन कराती हैं। अब लोग खुद ही उनसे संपर्क कर एक दिन का भोजन कराने का सहयोग करने लगे हैं।

 

 

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सिंगल मदर फिर भी बच्चियों को लिया गोद
किन्हीं कारणों से जीवन साथी का साथ झूटा लेकिन हिम्मत नहीं टूटी और दो बच्चियों के पालन पोषण की खुद ही जिम्मेदारी उठाई। आज रोज कुरैशी दो बच्चियों की सिंगल मदर हैं, इसके बावजूद दो अनाथ बेटियों को लेकर उनका पालन पोषण कर रही हैं। दो बच्चियों को गोद लेकर वे समाज में अनाथ और बेसहारा बेटियों के प्रति सम्मान रखने का संदेश भी दे रही हैं। इसके अलावा उनके सहयोगी ने भी प्रेरित होकर अनाथ बच्ची को गोद ले रखा है।

खुद करती हैं ड्रेसिंग
रोज कुरैशी ने बताया कि जहां कहीं भी उन्हें मानसिक विक्षिप्त या रोगी मिलते हैं या सूचना मिलती है तो वे स्वयं पहुंच जाती हैं। उन्हें साफ सुथरा करने से लेकर उनके शरीर के कीड़े हटाने तक का काम वे स्वयं करती हैं। साथ ही अस्पताल में इलाज हो या मानसिक अस्पतालों में रेफर कराने का काम खुद के स्तर पर करती हैं। वे कहती हैं कि...उन्हें इस काम से दरिद्र नारायण की सेवा करने का सुख मिलता है।



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