
जबलपुर। सनातन हिंदू धर्म में नवरात्र की महिमा अपरंपार है। भारतीय पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (एकम) से लेकर नवमी तक शारदीय नवरात्र में मातृशक्ति की आराधना का दौर होता है। कभी-कभी तिथि का क्षय भी हो जाता है और कभी वृद्धि हो जाती है जबकि कई बार संयुक्त तिथि भी हो जाती है। शारदीय नवरात्र में उपवास किया जाता है और माता की आराधना की जाती है। निर्मल, निश्छल और समर्पित भाव से माता की आराधना की जाती है तो उनकी कृपा प्राप्त होती है। कुछ भक्त आध्यात्मिक सुखों के लिए तो अधिकांश भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए माता की आराधना करते हैं। उनकी मन की मुराद पूरी हो भी जाती है।
नवरात्र में उपवास के साथ आराधना करते हुए मातृशक्ति का अनुष्ठान किया जाता है। श्री दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय ‘मधु-कैटभ वध’ में माता महाकाली की कथा का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है कि जब संपूर्ण ब्रह्मांड में जल-प्रलय था तब भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में थे, अत: उनके कानों में मैल जमा हो गया था, जिसे निकालकर उन्होंने बाहर फेंका तो उससे ‘मधु-कैटभ’ नामक दो राक्षस पैदा हो गए जो ब्रह्माजी को मारने के लिए दौड़े। तब ब्रह्माजी ने योगनिद्रा की स्तुति की, जो महाकाली के रूप में प्रकट हुईं। उन्होंने ‘मधु-कैटभ’ को मोहित किया और विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र से ‘मधु-कैटभ’ का वध कर दिया।
कन्या की पूजा सभी सुख दिला देती है
नवरात्र में जहां उपवास के रूप में तप किया जाता है वहीं माता की पूजा और उनकी आराधना भी की जाती है। कठोर साधनाएं करते हैं पर फिर भी नवरात्र में सबसे ज्यादा जोर कन्या पूजन पर दिया गया है। इन नौ दिनों में कुंवारी कन्याओं के लिए जितना ज्यादा बन सके, करें। इससे मां की कृपा सहज रूप में प्राप्त होगी। कन्या भोजन जरूर कराएं। इससे दुर्गाजी का आशीर्वाद अवश्य मिलता है। कन्या को देवीस्वरूप कहा गया है और छोटी सी इस कन्या की पूजा कार-बंगला सहित सभी सुख दिला देती है।
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