
जबलपुर। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की लोकल ब्रांच की ओर से गुरुवार को वल्र्ड सोरियासिस डे पर एक जागरुकता कार्यक्रम किया गया। आइएमए भवन में कार्यशाला में बतौर अतिथि डॉ. बृजेश अग्रवाल एवं डॉ. राजीव सक्सेना थे। दोनों डॉक्टर ने सोरियासिस के लक्षण और उपचार से संबंधित जानकारी दी। इससे पहले आइएमए के अध्यक्ष डॉ. दीपक साहू ने बताया कि स्वास्थ्य दिवस का विशेष महत्व होता है। दुनियाभर में इस गंभीर बीमारी से 3 फीसदी आबादी यानी कि करीब 12.50 करोड़ लोग प्रभावित है।
कार्यक्रम में त्वचा रोग विशेषज्ञों ने बताया कि सोरायसिस एक ऑटोइम्यून स्थिति है, जिसमें मरीज की प्रतिरक्षक प्रणाली अपने ही शरीर की कोशिकाओं (सेल्स) को बीमारी से पीडि़त मानकर उन पर हमला कर देती है। सोरायसिस के मरीजों में त्वचा कोशिकाएं काफी तेजी से बढ़ती हैं। आमतौर पर हमारे शरीर में त्वचा की नई
कोशिकाएं हर 10 से 30 दिनों में बनती हैं, जो पुरानी कोशिकाओं को बदल देती हैं। सोरायसिस में स्किन के नए सेल्स हर 3-4 दिन में काफी तेजी से बनते हैं। इससे शरीर को पुरानी कोशिकाएं छोडऩे के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। स्किन की ऊपरी परत पर पपड़ी बन जाती है। वह छिल जाती है। त्वचा रूखी हो जाती है। सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। खुजली के कारण त्वचा लाल हो जाती है और उसमें घाव बन जाते हैं।
सोरायसिस शरीर की त्वचा के अलावा
स्कैल्प, हथेलियों, तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर भी होता है। सर्दियों के मौसम में स्किन ड्राई होने से यह बीमारी अधिक परेशान करती है। सोरायसिस के कारण मरीज स्किन की ऊपरी परत पर पपड़ी जमने, खुजली उठने और लाल धब्बे पडऩे से तनाव में आ जाते हैं. सोरायसिस में त्वचा की ऊपरी सतह पर जमने वाली पपड़ी, खुजली, सूजन और जलन के लिए केमिकल्स जिम्मेदार होते हैं।
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