
जबलपुर। कोरोना मरीजों को इलाज मुहैया कराने के नाम पर मप्र सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों को कोरोना डेडिकेटेड अस्पताल बनाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर मप्र हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए याचिकाकर्ता ने प्राइवेट अस्पतालों को खूब पैसा बांटने का आरोप लगाया था। जिसके बाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की बात सुनी और उसे तथ्यहीन मानते हुए खारिज कर दिया, साथ ही उस पर एक लाख रुपए की कॉस्ट भी लगाई है, जिसे दो माह के भीतर सीएम रिलीफ फंड में जमा करने का आदेश दिया गया है।
यह है मामला
निजी अस्पतालों को कोरोना डेडिकेटेड अस्पताल बनाने के खिलाफ मध्यप्रदेश हाइकोर्ट में भोपाल निवासी भुवनेश्वर मिश्रा ने एक जनहित याचिका दायर की थी। दायर जनहित याचिका में भुवनेश्वर मिश्रा ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों को प्रत्येक मरीज़ 5400 रु - की दर से निजी अस्पतालों को भुगतान किया है। इसके साथ ही सरकार ने कोरोना इलाज के नाम पर निजी अस्पतालों के साथ मिलकर जमकर भ्रष्टाचार किया है।
सरकार की ओर से दायर जवाब में बताया कि निजी अस्पतालों को आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत ही भुगतान किया गया है। जिसमें 1800 रु जनरल वार्ड, 2700 रु ऑक्सीजन बेड, आईसीयू 3600 रु और वेंटीलेटर बेड के 4600 रुपए की दर से भुगतान तय है एवं उसी दर से पैसा दिया गया है। ऐसे में भ्रष्टाचार का कोई मामला ही नहीं है और न ही प्राइवेट अस्पतालों को याचिकाकर्ता द्वारा बताई गई फीस दी गई है। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनते हुए पाया कि भुवनेश्वर मिश्रा द्वारा बिना तथ्यों की जांच किए आरोप लगाए गए हैं। कोर्ट ने दो लाख रुपए का जुर्माना लगाकर दो महीने की मोहलत दी है।
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