
जबलपुर। पितरों के तर्पण, मोक्ष और सेवा का पर्व पितृपक्ष मंगलवार से शुरू हुआ। सुबह की पहली किरण के साथ ही लोग नर्मदा तटों व जलाशयों के किनारे पहुंच गए। पंडों के मंत्रोच्चार के बीच लोगों ने पितरों को आमंत्रित किया। तिल, उड़द की दाल, आटे से बनाए पिंडों को नर्मदा में प्रवाहित कर पितरों को नर्मदा जल कलशों में विराजमान होकर घर चलने का आह्वान किया। पंडों ने विधि विधान से लोगों को पूर्वजों का तर्पण व पिंडदान आदि कराया। दोपहर बाद तक नर्मदा के तटों पर पितृ आवाहन करने वालों का आवागमन लगा रहा। बहुत से लोगों ने कोरोना संक्रमण की आशंका को देखते हुए घर पर ही तिलांजलि व श्राद्ध कर्म पूरे किए।
नर्मदाजल के कलश में आए पुरखे
आज है प्रतिपदा श्राद्ध
बुधवार को प्रतिपदा तिथि के दिन प्रतिपदा श्राद्ध होगी। प्रतिपदा के दिन दिवंगत पुरखों का आज तर्पण किया जाएगा। जिस भी व्यक्तिकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि (शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष) के दिन होती है, उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता है।
विधिवत पूजन करने से होती है मोक्ष की प्राप्ति
ज्योतिषाचार्य जनार्दन शुक्ला ने बताया कि हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए, तो उसे इस लोक से मुक्तिनहीं मिलती और उसकी आत्मा इस इस संसार में भटकती रहती है। पितरों का विधिवत पूजन वंदन करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वे परिजन को इच्छापूर्ति का आशीर्वाद देकर जाते हैं। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं।
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