
जबलपुर। 23 सितंबर, यानी आज से राहु और केतु छाया ग्रहों का राशि परिवर्तन हो गया है। राहु आज से वृषभ राशि में और केतु वृश्चिक राशि में वक्री गति अर्थात उलटी चाल के साथ संचरण में आ गए हैं। एस्ट्रोलॉजर एवं पामिस्ट अजहर हाशमी के अनुसार जैसे शतरंज के खेल में घोड़े की ‘ढाई घर’ वाली चाल मारक भी होती है और तारक भी, वैसे ही राहु-केतु की ‘उलटी चाल’ राशिगत शुभाशुभ प्रभाव से राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की शक्ति रखती है, ऐसा कहा जाता है। लेकिन एक बात महत्वपूर्ण है, वह यह कि ‘जिसको ईश्वर लसे उसको कोई व डसे’ यानी परमात्मा की कृपा जिस पर हो, उसका कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वस्तु! राहु और केतु अठारह महीने यानी डेढ़ साल में राशि बदलते हैं। इस प्रकार बारह राशियों से गुजरने में उलटी चाल से उन्हें 18 साल लग जाते हैं। सन् 2003 के बाद राहु-केतु पुन: वृषभ और वृश्चिक राशि में आए हैं और 23 सितम्बर, 2020 से लगभग 7 अप्रैल 2022 तक इन्हीं राशियों में रहकर विभिन्न राशियों/प्रदेश/देश और दुनिया पर प्रभाव डालेंगे।
मुख्य बातें
1. वृषभ राशि में राहु, क्योंकि उच्च का द्योतक है और वृषभ राशि का स्वामी शुक्र है, जो दा नवों का आचार्य है। अत: वृषभ राशि वाले व्यक्तियों, प्रदेशों, देशों के लिए बहुत अच्छे फल देगा।
2. वृश्चिक राशि में केतु उच्च होता है। अत: वृश्चिक राशि वाले व्यक्तियों/प्रदेश, देशों के लिए लाभदायक होगा।
3. राहु और केतु का यह राशि परिवर्तन युवाओं के लिए रोजगार के अवसर लाएगा। यह स्थिति अक्टूबर 2020 से अप्रैल 2022 तक क्रमश: प्रगति का ग्रॉफ बनाएगी। फरवरी 2021 से अप्रैल 2022 तक सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्रों में युवाओं की प्रतिभा तथा योग्यता के अनुरूप रोजगार मिलेगें।
4. पौराणिक कथा के अनुसार राहु देवताओं को दिया जाने वाला अमृत पीकर विष्णुजी के सुदर्शन चक्र की मार से बचने के लिए अंतरिक्ष में भागा था, फिर भी सुदर्शन चक्र से बच नहीं सका। दो टुकड़े हो गए। सिर राहु और धड़ केतु कहलाया। अमृत पी चुका था। अत: मर नहीं सका। रक्त आकाश में बहता रहा। इस बार राहु के राशि परिवर्तन से आकाश में रक्तपात अर्थात आंतरिक्ष-युद्ध की संभावना महाशक्तियों के बीच बन रही है।
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