
जबलपुर। आज हर इंसान ज्यादा से ज्यादा जीना चाहता। मौत वो कभी सपने में भी नहीं सोचता है। लेकिन ये संभव नहीं है। आज मेडिकल साइंस ने एक ऐसा तरीका खोज लिया है, जो मरे हुए इंसान को सालों तक जिंदा रख सकती है। वो भले ही इस दुनिया में न रहे, लेकिन वो किसी न किसी के दिल में घडक़ेगा, आंखों में दिखेगा। जी हां हम बात कर रहे हैं अंगदान की। जिससे हम मरकर भी जिंदा रह सकते हैं।
विश्व अंगदान दिवस पर वेबिनार में बोले विशेषज्ञ वक्ता
अंगदान के लिए आगे आएं तो बच सकती हैं कई जिंदगी
विश्व अंगदान दिवस के उपलक्ष्य में गुरुवार को वेब संगोष्ठी (वेबिनार) का आयोजन किया गया। इसमें नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. पवन स्थापक के संयोजन में डॉ. राजेश पटेल, किडनी रोग विशेषज्ञ, डॉक्टर मनीष तिवारी गेस्ट्रो-एंट्रोलॉजिस्ट और डॉ. पुनीत जिन्दयाल हृदय रोग विशेषज्ञ ने भाग लिया। सभी ने देश में कम हो रहे ऑर्गन डोनेशन पर चिंता व्यक्त की।
वेबिनार में वक्ताओं ने कहा, ऐसा लगता है कि ऑर्गन डोनेशन अगर इसी तरह से कम होता रहा, तो असमय मृत्यु के मामले बढ़ते चले जाएंगे। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के वेबिनार में डॉ. स्थापक ने नेत्र प्रत्यारोपण कॉर्निया, ट्रांसप्लांट के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी दी।

एक बार ही बना ग्रीन कॉरीडोर
वक्ताओं ने संगोष्ठी में जानकारी दी कि विगत 4 वर्ष पूर्व जबलपुर में केवल एक बार ही डिविजनल ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन कमेटी के सौजन्य से ग्रीन कॉरिडोर का निर्माण हुआ था। जब एक मरीज के द्वारा दी गई किडनी, लीवर, हार्ट और नेत्रों का उपयोग किया गया था। नेत्रों का उपयोग दादा वीरेंद्र पुरी जी नेत्र संस्थान आई बैंक में किया गया था। हार्ट भोपाल चिरायु हॉस्पिटल में ग्रीन कॉरिडोर के जरिए जबलपुर से पहुंचाया गया था। वक्ताओं ने कहा कि अंगदान के पावन कार्य मे पूरे समाज के सभी बंधुओं को एक साथ आगे आने की आवश्यकता है।
विश्व में अंधत्व का 25 फीसदी भारत में है। लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाए। इससे कई लोगों को रोशनी मिल सकती है।
- डॉ. पवन स्थापक
वर्तमान परिस्थिति में जबलपुर में किडनी ट्रांसप्लांट पॉसिबल है। किडनी ट्रांसप्लांट के 95 फीसदी मामले सफल रहे है।
- डॉ. राजेश पटेल
लिवर ट्रांसप्लांट जबलपुर में भी किया जा सकता है इसकी सफलता का प्रतिशत काफी अच्छा है। लोगों को आगे आना चाहिए।
- डॉ. मनीष तिवारी
सम्भागीय ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन कमेटी को सक्रिय करना होगा। समाज में जागरुकता से ऑर्गन डोनेशन में कमी की खाई को पाटा जा सकता है।
- डॉ. पीजी नाजपांडे
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