सवाल जल-जंगल-जमीन के हक है, संगठित तो होना होगा

जबलपुर। 'आदिवासी संस्कृति देश की धरोहर है। इसकी रक्षा करने के लिए हरसम्भव प्रयास किए जाने चाहिए। समाज के लोगों को शिक्षित करन की दिशा में कार्य करने की जरूरत है। इसी प्रकार उन्हें अपने हक तभी मिल सकते हैं, जब वे संगठित होंगे। यह बात जबलपुर शहर के मालगोदाम स्थित राजा शंकरशाह रघुनाथ शाह बलिदान स्थल पर आयोजित विश्व आदिवासी दिवस पर मुख्य अतिथि पूर्व विधायक नन्हेंलाल धुर्वे ने कहीं।

गढ़ा गोंडवाना संरक्षक संघ की ओर से आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत बलिदान स्थल पर पूजा-अर्चना के साथ हुई। धुर्वे ने कहा कि आज आदिवासियों को संगठित होकर अपने हक की लड़ाई लडऩे की जरूरत है, तभी जल, जंगल और जमीन के हकदार रहेंगे। उन्होंने आदिवासी समाज के लिए भी अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज आदिवासी समाज उपेक्षा का शिकार हो रहा है।

तेज बारिश के बीच हुए कार्यक्रम में आदिवासी समाज के लोगों ने अपनी बात रखी। संचालन सरमन रजक ने किया। कार्यक्रम में आदिवासी गढ़ा गोंडवाना के रामरतन यादव, बाल किशन चौधरी, अजय झरिया, किशोरी लाल भलावी, डीएल कोरचे, पिंकू गोटिया, उमेश काकोडिया, सूरज चौधरी, सुधीर शर्मा, अनुराग सिंह, संजू भोजक, कामिनी धुर्वे, दुर्गा उउइके, प्रमिला मरावी, नेहा, रानी, शशि भलावी शामिल थीं।

आदिवासियों की उपेक्षा कर रही प्रदेश सरकार
विश्व आदिवासी दिवस पर कांग्रेस ने वचुर्अल संवाद कार्यक्रम किया। जिसमें आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस मौके पर पूर्व मंत्री कौशल्या गोंटिया ने कहा कि प्रदेश व केन्द्र सरकार आदिवासी समाज की उपेक्षा कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में वर्ष 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने आदिवासी दिवस पर अवकास की घोषणा की थी। प्रदेश सरकार द्वारा आदिवासियों के उत्थान के लिए कोई कार्यक्रम संचालित नहीं किए जा रहे हैं। जबकि प्रदेश में आदिवासियों की संख्या बहुत है। कोरोना संक्रमण काल में मजदूरी करने वाले आदिवासियों को सरकार द्वारा तीन माह तक मदद नहीं दी गई। कार्यक्रम में अन्य कांग्रेसी नेता भी सम्मिलित हुए।



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