आजादी पर बुलंद इरादे! यहां के सेनानी कर रहे देश-समाज, शिक्षा-समरसता, पृथ्वी-पानी की चिंता

जबलपुर। तमाम समस्याएं हैं, जो देश-समाज को संसाधनों की कमी सहित अन्य दुष्परिणामों की ओर ले जा रही हैं। इन खतरों से बचाने के लिए जबलपुर में में ऐसे कई कर्मवीर है, जो अपने पुरुषार्थ से लोगों को पराधीन होने से बचाने के लिए शिद्दत से लगे हैं। कोई फसलों में अंधाधुंध रासायनिक खाद्य के उपयोग के खिलाफ अभियान छेड़कर जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रहा है, तो कोई भूजल सहेजने के लिए जागरूक कर रहा है। कुछ ऐसे भी हैं, जो लोगों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। एक महिला प्रोफेसर रिटायर होने के बाद भी नि:शुल्क विद्यादान कर हैं।
धरती को बनाना है स्वस्थ
उर्वरक के अंधाधुंध उपयोग से जमीन बंजर हो रही है। मृदा में कार्बन की मात्रा घट रही है। इस प्रकार उपजा अन्न, सब्जियां व फल लोगों को बीमार कर रहे हैं। इसे लेकर दुनियाभर के वैज्ञानिक चिंता जता रहे हैं। ऐसे में शहपुरा के कृष्णपाल ने ठाना है कि उन्हें अपनी उपज से कैंसर जैसी बीमारियां नहीं परोसना। धरती माता को स्वस्थ बनाना है। वे डीएपी से लेकर अन्य उर्वरक स्वयं तैयार करते हैं, जिनका उपयोग खेतों में कर रहे हैं। वे लोगों को खेती में रासायनिक खाद के उपयोग के स्थान पर जैविक खेती के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। 48 साल के किसान कृष्णपाल जिले के अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं कि वे जैविक खेती करें। कृष्णपाल ने जैविक खेती के उन्नत स्वरूप मल्टी लेयर फार्मिंग भी शुरुआत की है। इसके तहत वे एक ही सीजन में उतनी ही जमीन पर कई तरह की सब्जियां उत्पादन कर रहे हैं। डीएपी के विकल्प के तौर पर वे सुगर मिल से निकले ट्रेस मट का उपयोग कर रहे हैं। उसे वे जीवाणु कल्चर से उपचार कर पका लेते हैं। इसके साथ वर्मी कम्पोस्ट का खेतों में उपयोग कर रहे है। खेत से निकले जैविक कचरे से भी खाद बनाना शुरू कर दिया है।
भूजल सहेजने का जज्बा
शहर के अधिवक्ता रमेशचंद्र तिवारी 87 वर्ष की उम्र में भूजल सहेजने व ट्यूबवेल खनन रोकने के लिए लोगों को विभिन्न माध्यमों से अभियान चलाकर जागरूक कर रहे हैं। उनका मानना है कि ट्यूबेवल खनन के कारण अंधाधुंध तकरीके से भूजल निकाला जा रहा है। ट्यूबवेल से निकाले गए जल का पुनरभरण नहीं होता। लगातार ऐसा होता रहा, तो भविष्य में पानी का महासंकट पैदा हो जाएगा। तिवारी का मानना है कि मशीन से अभी तो पानी मिल रहा है, लेकिन आने वाली पीढ़ी को गम्भीर जलसंकट देकर जाएंगे। भूजल के खतरे को आगाह करते हुए उन्होंने 'भारत में भूजल की समस्या एवं समाधानÓ विषय पर एक किताब भी लिखी है। वे युवाओं को यह किताब पढऩे के लिए भी देते हैं। तिवारी के अनुसार ट्यूबवेल से जल निकासी जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है।
कॉलेज छूटा, लेकिन नहीं छूटे तो छात्र
सेवानिवृत्ति के बाद भले ही कॉलेज छूट गया, लेकिन छात्र नहीं छूटे। छात्रों को आज भी उसी शिद्दत के साथ पढ़ाती हैं, जिस तरह कॉलेज में पढ़ाती थीं। शासकीय ऑटोनॉमस साइंस कॉलेज में जियोलॉजी और बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग की एचओडी रहीं प्रोफेसर डॉ. आशा खन्ना वर्ष 2009 में रिटायर हुईं। इस दौरान उन्होंने एक निजी कॉलेज में भी अपनी सेवाएं दी। साथ ही छात्रों को नि:शुल्क पढ़ाने का निर्णय लिया। वे बॉयोटेक्नोलॉजी विषय से जुड़ी थीं। इसलिए उन्होंने रानी दुार्गवाती विश्वद्यिालय के बायोसाइंस विभाग में लगातार कई सालों तक छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क पढ़ाया। उन्होंनें विवि के कौशल विकास केंद्र में डीएमएलटी के छात्रों को भी नि:शुल्क शिक्षण कार्य कराया। लॉकडाउन के चलते कक्षाएं सस्पेंड होने के कारण शिक्षण कार्य बाधित होने पर वे ऑनलाइन अध्यन करा रही हैं।



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