निजी अस्पतालों में गरीबों के इलाज के मामले पर बने तीन नए पक्षकार, नोटिस जारी

जबलपुर. हाईकोर्ट ने राज्य के निजी अस्पतालों मे गरीबों के इलाज के लिए गाइडलाइंस तय करने के मसले पर नेशनल हेल्थ एजेंसी, आयुष्मान भारत मप्र व मप्र नर्सिंग होम्स एसोसिएशन को भी पक्षकार बनाने के निर्देश दिए। चीफ जस्टिस एके मित्तल व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने तीनों को अनावेदक बनाकर नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई दो सितम्बर तक जवाब मांगा गया।
यह है मामला
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अश्विनी कुमार ने आठ जून को भारत के प्रधान न्यायाधीश को पत्र भेजा था। उसमें जानकारी दी गई थी कि मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले में एक बुजुर्ग मरीज को बिल न चुकाने पर निजी अस्पताल प्रबंधन ने पलंग से बांध दिया। बंधक बनाने की यह घटना अमानवीयतापूर्ण होने के कारण ठोस कार्रवाई के दिशा-निर्देश अपेक्षित है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि, यह घटना भारतीय संविधान के तहत दिए गए सम्मान के साथ जीवन जीने के मौलिक अधिकार के उल्लंघन की श्रेणी में आती है। सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी पर संज्ञान लेते प्रकरण हाईकोर्ट भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट से मध्यप्रदेश हाई कोर्ट अग्रेषित हुए पत्र को जनहित याचिका के रूप में सुनने का निर्देश दिया। केंद्र शासन की ओर से सॉलिसिटर जनरल जिनेंद्र कुमार जैन, नर्सिंग होम्स एसोसिएशन की ओर से श्रेयस पंडित व राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आरके वर्मा ने पक्ष रखा। कोर्ट ने गत सुनवाई के दौरान पाया था कि पूर्व में भी इस तरह के मामले समय-समय पर सामने आते रहे हैं। कोरोना काल में निजी अस्पतालों की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। आर्थिक रूप से कमजोर मरीज के निजी अस्पतालों में इलाज के लिए एक आदर्श आचार संहिता अथवा गाइडलाइन निर्धारित करने की आवश्यकता देखते हुए कोर्ट ने कोर्ट मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ से सुझाव मांगे थे।



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