
जबलपुर. कोरोना का संक्रमण जितनी तेजी से फैल रहा है, कोरोना के इलाज को लेकर उतनी ही लापरवाही सामने दिख रही है। अब तो आइसोलेशन सेंटर्स में भर्ती कोरोना मरीजो पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा। वहां रहने वाले मरीजो के खाने व दवा देने में भी गजब की लापरवाही उजागर हो रही है। उसी का जीता जागता उदाहरण है, नर्मदा रोड निवासी 64 वर्षीय बुजुर्ग जिनकी अस्पताल के बाथरूम में गिरने से मौत हो गई।
परिजन बताते है कि वह शुगर के मरीज थे, सुबह से पेट खाली होने से शुगर लेबल 65 पर पहुंच गया। वह ऑक्सीजन पर थे पर कैथेडर तक नहीं लगा था। ऐसे में लघुशंका लगी तो ऑक्सीजन मास्क उतारकर खुद ही शौचालय गए जहां कमजोरी के चलते गिरे और वहीं उनकी मौत हो गई। यह बताते बताते परिजनो की आंखें छलक उठीं, गला रुंध गया। पर इससे स्वास्थ्य महकमें पर कोई फर्क नहीं। कोरोना से जान गंवाने वाले नर्मदा रोड निवासी रेलवे के सेवानिवृत्त कर्मचारी 64 वर्षीय वृद्घ के बेटे ने कहा कि कोरोना जांच के लिए सैंपल लेने के बाद रिपोर्ट मिलने में विलंब व मेडिकल में उपचार के दौरान बरती गई लापरवाही के कारण उनके पिता की मौत हो गई।
कोरोना से मृत वृद्घ के बेटे का कहना है कि 31 जुलाई की रात घर पर पिता की तबीयत अचानक खराब होने लगी। उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। 108 एंबुलेंस को सूचना दी गई। एंबुलेंस घर पहुंची लेकिन कर्मचारी यह बोलकर कि मरीज कोरोना सस्पेक्टेड है मेडिकल पहुंचाने से इनकार कर दिया। काफी मिन्नत के बाद कर्मचारी माने और एंबुलेंस में ले जाने तैयार हुए। सांस की तकलीफ के कारण उन्हें पिता को स्वयं ऑक्सीजन लगानी पड़ी। कर्मचारी मरीज के पास बैठने तैयार नहीं थे। रात में वे मेडिकल पहुंचे और वहां भी मानसिक प्रताड़ना मिली। मेडिकल में पिता को भर्ती करने से इनकार किया गया। चिकित्सक बोले की कोरोना की रिपोर्ट आने के बाद ही भर्ती किया जा सकेगा। पिता को भर्ती कराने के लिए उन्हें सिफारिश करनी पड़ी।
हैरानी की बात यह है कि कोरोना से मृत 64 वर्षीय वृद्घ के सैंपल की रिपोर्ट कब आई थी, इसकी जानकारी जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. रत्नेश कुरारिया नहीं दे पाए। उनसे जब पूछा गया तो वे पहले गोलमोल जवाब देने लगे। बाद में कहा कि रिपोर्ट के बारे में पता करना पड़ेगा। इधर, मृतक के स्वजन का कहना है कि कोरोना सैंपल की रिपोर्ट का पता उन्हें एक अगस्त की रात चल पाया था। 27 को सैंपल देने के पांचवें दिन रिपोर्ट मिलने के कारण पिता की हालत बिगड़ती गई। समय से रिपोर्ट मिलती और मेडिकल में उपचार में लापरवाही न बरती जाती तो उनकी जान बच सकती थी। हालांकि मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डीन डॉ. प्रदीप कसार का कहना है कि कोरोना संक्रमित वृद्घ के उपचार में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती गई। यूरिन कैथेटर उस मरीज को लगाया जाता है जो बेहोशी की हालत में हो, उसे नहीं जो चलने फिरने में सक्षम हो।
मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डीन डॉ. प्रदीप कसार ने बताया कि नर्मदा रोड निवासी 64 वर्षीय वृद्घ को 26 जुलाई को तेज बुखार आया था। उन्होंने घर के समीप स्थित निजी क्लीनिक में परामर्श लिया जहां चिकित्सक ने कोरोना जांच की सलाह दी थी। 27 जुलाई को उन्होंने विक्टोरिया अस्पताल में जांच कराई थी वहीं सैंपल लिया गया था। उसके बाद वे घर पर ही क्वारंटाइन रहे जहां 31 जुलाई को उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई जिसके बाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल के कोविड सस्पेक्टेड वार्ड में भर्ती कराया गया। जांच में वे बुखार, निमोनिया, रेस्पिरेटरी फेल्योर व डायबिटीज से भी पीड़ित मिले। उपचार के दौरान रविवार सुबह 6.25 बजे उनकी मौत हो गई।
इस बीच रविवार को कोरोना से संक्रमित 64 नए मरीज सामने आए तथा कोरोना से जान गंवाने वाल मरीजों का आंकड़ा 30 पहुंच गया।
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://bit.ly/3fn1v60
#jabalpur
0 Comments