दूर्वा से बनाई बिजली अब कमर्शियल प्लांट की तैयारी, पेटेंट होगी खोज

लाली कोष्टा@जबलपुर। वैसे घास की इंसानी जीवन में कोई वैल्यू नहीं होती है। घास या तो पशुओं के भोजन में काम आती है या फिर भगवान के पूजन में दूर्वा घास का उपयोग होता है। लेकिन जबलपुर के छात्र अतीत ने दो साल से ज्यादा की कड़ी मेहनत के बाद इसकी अनुपयोगी घास से बिजली पैदा कर सनसनी मचा दी है। रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय के बायो डिजाइन इनोवेशन सेंटर में हुई रिसर्च में अतीन ने डीआईसी के डायरेक्टर प्रो. एसएस संधू के मार्गदर्शन में यह उपलब्धि हासिल की है। अतीत की यह खोज पिछले साल पूरी हो गई थी, जिसका जल्द ही पेटेंट मिलने वाला है। जिसके बाद यह कमर्शियल प्लान के तैयार जमीन आ जाएगी। इसके लिए विवि स्तर पर प्रयास तेज हो गए हैं, ताकि जल्द से जल्द इस खोज से बिजली उत्पादन के क्षेत्र में नया अध्याय लिखा जा सके।

 

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ऐसे बनाई दूर्वा से बिजली
प्रो. एसएस संधू ने बताया कि घास की जड़ें जब जमीन पर जाती हैं तो भीतर पाए जाने वाले फंजाई, बैक्टीरिया का ये भोजन होता है। वे कुछ इलेक्ट्रॉन पैदा करते हैं। इलेक्ट्रान प्रोडयूस करने वाले ऐसे ही बैक्टीरिया की लैब में पहचान की गई, जो इलेक्ट्रॉन बना रहे हैं। इन बैक्टीरिया, फंजाई को मिट्टी से निकालकर लैब में टेस्ट कर जांचा परखा गया। कंडेक्टिव इलेक्ट्रोड के माध्यम से इलेक्ट्रॉन को ट्रैप किया गया। फिर दोबारा स्वाइल के अंदर डालकर मेटाबॉलिजम की एक्टीविटी को देखा गया कि किस तरह ये इलेक्ट्रान प्रोडयूस कर बिजली सर्किट को पूरा करते हैं। इलेक्ट्रान को स्टोर कर बिजली में कनवर्ट किया गया।

नौ वॉट बिजली बनाई
अतीत जावरे ने बताया कि दूर्वा घास से बिजली बनाने के इस प्रोजेक्ट को डीआईसी सेंटर ने 'मॉस एंड ग्रास ई-टेबल' का नाम दिया है। अब इस प्रोटोटाइप को और विस्तारित करने पर काम बड़ी तेजी से किया जा रहा है। अतीत जावरे ने घास के माध्यम से प्वॉइंट चार से नौ वॉट की बिजली उत्पादन करने में सफलता प्राप्त की है। इस बिजली का उपयोग बल्ब से किया गया और बटन दबाते ही बल्ब रोशन हो उठे। पैदा हुई बिजली से दो वॉट से लेकर नौ वॉट तक की स्मॉल बैटरी को चार्ज किया सकता है। इससे गैजेट्स, मोबाइल को भी चार्ज किया जा सकता है।

 

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इंवेस्टर मिलें तो जमीन पर आए प्रोजेक्ट
प्रो. एसएस संधू ने बताया कि देश में दूर्वा घास बड़ी मात्रा में पैदा होती है। जिसके लिए खेती करने या किसी प्रकार के खर्च की जरूरत भी नहीं होती है। दूर्वा घास से बिजली पैदा करने वाले इस प्रोजेक्ट का पेटेंट कुछ समय में मिलने की उम्मीद है। साथ ही इंवेस्टर मिलते ही यह प्रोजेक्ट जमीन पर आ जाएगा। जिसके लिए विवि स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।



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