
कोरोना संक्रमण के बीच यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) की 6 जुलाई को गाइडलाइन आने के बाद से ही स्टूडेंट्स में परीक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। यूजीसी के मुताबिक सितंबर तक फाइनल ईयर की परीक्षा आयोजित की जानी है। हालांकि, कई राज्य सरकारें प्रदेश में यह परीक्षाएं रद्द कर चुकी है। वहीं, अब यूजीसी की संशोधित गाइडलाइन को लेकर राज्य और केंद्र सरकार आमने-सामने है। कई राज्य सरकाराें ने काॅलेज-विश्वविद्यालयाें की परीक्षा करवाने में असमर्थता जताते हुए यूजीसी केनिर्देशाें में बदलाव की मांग की है।
पत्र लिख किया परीक्षा का विरोध
इसी क्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु सरकार ने केंद्र काे पत्र लिख परीक्षाएं न करवाने की मांग की है। वहीं, महाराष्ट्र के करीब पौने नौ लाख छात्रों में भ्रम की स्थिति है। राज्य सरकार चाहती है कि बिना परीक्षा के ही छात्रों को उत्तीर्ण घोषित कर दिया जाए। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार पहले से ही अंतिम वर्ष की परीक्षा के बिना छात्रों को उत्तीर्ण करने की नीति पर कायम है। इस संबंध में राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री उदय सामंत ने एक बार फिर यूजीसी को पत्र भेजकर इस पर पुनर्विचार के लिए कहा है।
असमंजस में मध्य प्रदेश के स्टूडेंट्स
मध्य प्रदेश के स्टूडेंट्स में भी परीक्षा को लेकर फिर असमंजस में हैं। राज्य की यूनिवर्सिटीज का कहना है कि परीक्षा को लेकर मप्र में अभी तक कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है। दरअसल, अब टकराव यूजीसी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लिए गए निर्णय को लेकर है। यूजीसी ने परीक्षा कराने को कहा और सीएम ने फाइनल ईयर स्टूडेंट्स को दो ऑप्शन दिए हैं।
या ताे वे पिछले एकेडमिक ईयर के सर्वाधिक अंक प्राप्त वाला रिजल्ट ले लें या परीक्षा दे दें। परीक्षा कराने का काम विश्वविद्यालयों का है। कोरोना के कारण राज्य सरकार ने परीक्षा नहीं कराने का निर्णय लिया। लेकिन परीक्षा नहीं होने पर रिजल्ट की वैधता को लेकर बहस चल रही है।
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